अहो जिनेश्वर सांचे ईश्वर,
भक्ति भाव से नमन करूं।
वीतराग सर्वज्ञ हितंकर,
तेरा पथ अनुसरण करूं ।। अहो…।।
रागादिक से भिन्न ज्ञानमय,
शुद्धातम अनुभवन करूं ।
देहादिक को न्यारा समझूं,
व्यर्थ कल्पना नहीं करूं ।। अहो…।।
जो होता है देखूं जानूं,
कर्ता बुद्धि नहीं करूं ।
निजानंद निज में ही वेदूं,
अब दुर्वेदन नहीं करूं ।।अहो…।।
दोष पराया नहीं निहारूं,
दोष स्वयं का दूर करूं।
निज रत्नत्रय निज में पाऊं,
निज में ही संतुष्ट रहूं ।।अहो…।।
अद्भुत दर्शन अहो जिनेश्वर,
सहज स्वयं आनंदमय हूं ।
अब निर्वान्छक रहूं सदा ही
आप स्वयं मंगलमय हूं ।।अहो…।।
हुआ निःशंक निराकुल स्वामी,
साधन साध्य स्वयं ही हूं ।
सहज परम श्रद्धेय ज्ञेय और,
ध्येय अभेद स्वयं ही हूं ।।अहो…।।
रचयिता - ब्र. रवीन्द्र जी ‘आत्मन्’
Audio- ब्र. रवीन्द्र जी ‘आत्मन्’