ऐसी समझ के सिर धूल | Aesi samajh ke sir dhool

ऐसी समझ के सिर धूल |
धरम उपजन हेत हिंसा, आचरैं अघमूल || टेक ||

छके मत-मद पान पीके, रहे मन में फूल |
आम चाखन चहैं भोंदू, बोय पेड़ बबूल || १ ||

देव रागी लालची गुरु, सेय सुखहित भूल |
धर्म नग की परख नाहीं, भ्रम हिंडोले झूल || २ ||

लाभ कारन रतन विराजै, परख को नहिं सूल |
करत इहि विधि वणिज ‘भूधर’, विनस जै है मूल || ३ ||

Artist : कविवर पं. भूधरदास जी

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