आया-आया रे आनन्द का प्रसंग | Aaya aaya re anand ka prasang

आया-आया रे आनन्द का प्रसंग रे।
ध्याओ-ध्याओ निज आत्मा असंग रे॥
असंग आत्मा असंग आत्मा ॥ टेक॥

पर-भावों से भिन्‍न रे, निज से सदा अभिनन रे।
पर में हो क्‍यों खिनन्‍न रे, निज में रहो प्रसन्न रे॥
केवल जाननहार आत्मा, सहज आत्मा-सहज आत्मा॥1॥

देहादिक से न्यारा है, कर्मादिक से न्यारा है।
रागादिक से न्यारा है, ज्ञानमात्र अविकारा है॥
अक्षय सुखमय शुद्धात्मा, उपादेय है निजात्मा ॥ 2॥

व्यवहारों का पार नहीं, निश्चय में विस्तार नहीं।
सीख गुरु की मानो तुम, जाननहार को जानो तुम॥
पूर्ण स्वयं में हैं सभी, पूर्ण स्वयं में आत्मा॥ 3॥

बाहर में नहीं भटकाओ, शरण जिनेश्वर की आओ।
भेदज्ञान कर करो स्वानुभव, निज प्रभुता निज में पाओ॥
प्रभुतामय॒ शुद्धात्मा, समतामय शुद्धात्मा॥ 4॥

Artist: ब्र. श्री रवीन्द्र जी ‘आत्मन्’
Source: Swarup Smaran

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