ये महा महोत्सव मंगलमय सुहावना | Ye Maha Mahotsav Mangalmay Suhavana

ये महा महोत्सव मंगलमय सुहावना-२
निर्दोष जिनशासन की हो प्रभावना

अद्भुत स्वप्न सोलह माता ने देखे
आनंदकारी फल नृप उल्लेखे।
अंतिम भवधारी सुत गर्भ में आया
पुण्य फला नाथ त्रिभुवन ने पाया ।।
ये गर्भ कल्याणक अतिपावन मनभावना
ये महा महोत्सव मंगलमय सुहावना-२
निर्दोष जिनशासन की हो प्रभावना

प्रभु जन्म की मंगल घड़ी आई
तिहुलोक छाई खुशियां बाजी शहनाई ।
निरखत छवि प्रभु इन्द्र हर्षाए
पाण्डुक शिला पर मंगल नह्वन रचाए ।।
अंतर आनंद में प्रभु झूल रहे प्रभु पालना
ये महा महोत्सव मंगलमय सुहावना-२
निर्दोष जिनशासन की हो प्रभावना

उपशमरस धारा प्रभु मनमाहिं
विषयन में मन रीझत नाहीं ।
प्रभु जी वेश दिगम्बर धारें
राग से भिन्न निज ज्ञायक निहारें ।।
वैराग्य जननी भाई प्रभुवर भावना
ये महा महोत्सव मंगलमय सुहावना-२
निर्दोष जिनशासन की हो प्रभावना

समवसरण शोभित श्री जिनराया
वस्तु स्वरूप प्रभु वाणी में आया ।
लोकालोक झलके प्रभु ज्ञान माहिं
निज रस लीन भोगे आनंद सदा ही ‌।।
शाश्वत पद तुम सम प्रगटाऊं यह कामना
ये महा महोत्सव मंगलमय सुहावना-२
निर्दोष जिनशासन की हो प्रभावना

अशरीरी सिद्ध दशा क्षण में प्रगटाई
भव्यों के आदर्श सिद्ध जिनराई ।
ज्ञायक स्वभाव भव्य तुम सम निहारें
लख निज की प्रभुता मुक्ति पधारें ।।
ना रहे कामना अब कोई यह कामना
ये महा महोत्सव मंगलमय सुहावना-२
निर्दोष जिनशासन की हो प्रभावना

रचयिता: पं० विवेक जी, छिंदवाड़ा