ये दिन आछे लहे जी लहे जी। Ye din Aache lahe ji Lahe ji

ये दिन आछे लहे जी लहे जी ॥ टेक ॥
देव धरम गुरूकी सरधा करि, मोह मिथ्यात दहे जी दहे जी । ये ।। १ ।
प्रभु पूजे सुने आगमको, सतसंगतिमाहिं रहे जी रहे जी।। ये. ॥ २ ॥
‘द्यानत’ अनुभव ज्ञानकला कछु, संजम भाव गहे जी गहे जी ॥ ये. ॥ ३ ॥

अर्थ- हे प्राणी (मनुष्य पर्याय के ) ये दिन तेरे लिए अत्यन्त शुभ आए हैं। इन दिनों में धर्म और गुरु की श्रद्धा करके मोह व मिथ्यात्व का नाश कर।
इन दिनों प्रभु की पूजा करो, आगम का उपदेश सुनो और भले- सज्जन लोगों का साथ करो।
द्यानतराय जी कहते हैं कि इससे अर्जित अनुभव ज्ञान व जीने की कला, व्यवस्था को जानकर, समझकर संयम साधन के भाव जागृत करों व इनका पालन करो।

सोर्स: द्यानत भजन सौरभ
रचयिता: पंडित श्री द्यानतराय जी