When did Mahavira soul did Teerthankar prakrati ka bandh?

भगवान महावीर ने किस पर्याय में तीर्थंकर प्रकृति का बंध किया था ?

तीर्थंकर प्रकृति का बंध करने के बाद अधिक से अधिक कितने भव में मोक्ष होता ही है ?

पिछले कालचक्र में भूतकाल चौबीसी जब थी तब उस समय की भविष्य चौबीसी में महावीर के जीव के तीर्थंकर होने का उल्लेख था जैसे आज श्री कृष्ण का उल्लेख है ?

भूतकाल चौबीसी के प्रथम तीर्थंकर ने भविष्य की चौबीसी बताई होगी।
उसके पहले ही महावीर के जीव ने तीर्थंकर प्रकृति का बंध किया होगा।

इतने वर्ष में महावीर के जीव ने कितने भव धारण किए होंगे ?

तीर्थंकर प्रकृति बंधने के बाद जघन्य उसी भव में या उत्कृष्ट यदि मनुष्य आयु पहले बंधी हो तो नियम से 4the भव मे मोक्ष जाएंगे।

केवली असंख्यात चोवीसी के बाद भी कोन तीर्थंकर बनेगे वे भी बता सकते है।यदि तीर्थंकर प्रकुति बंधने के बाद केवली बताये तो उनके ज्ञान केवल नही कहलायेगा।

समन्तभद्र आचार्य तीर्थंकर बनने वाले है परंतु उन्होंने अभी बांधी नही है।विशेष अगर देखे तो उनको तीथकर बनने में लंबा काल बाकी है। वे तो निगोद में भी नियम से जाएंगे।
जैसे मारीचि का जीव गया था।

:pray::pray::pray:

महावीर भगवान ने नन्द राजा के भव में दीक्षा धरी, दीक्षा के बाद एक बार वे प्रौसठिल श्रुतकेवली की सभा में गए, वहाँ अनेक मुनिराज विराजे हुए थे, वहाँ चारो ओर धर्म का वैभव था, इसे देखकर उन्हें बहुत हर्ष हुआ, उन्हें लगा मानो श्रुतकेवली के मुख से वीतरागता भरा अमृत का झरना बह रहा है, धर्म की महिमा को देखकर उनके अंदर अद्धबुद्ध उल्लास होने लगा, उन्हें भावना होने लगी की इस धर्मामृत का पान सब करे, उनके भाव विशुद्ध होते चले गए, उनके अंतरंग में १६ कारन भावनाए होने लगी और उन्होंने श्रुत केवली के चरणों में छायिक सम्यक्त्व प्राप्त कर लिया, उन्हें तीर्थंकर प्रकृति का बंध हो गया । इसके बाद वे महा मुनि ऐसा ध्यान करते हुए की उन्हें अनेक रिद्धि प्रगट हो गयी । इसके बाद वे स्वर्ग गए और अगले भव में तीर्थंकर महावीर हो गए । Please read entire story http://vitragvani.com/uploads/pdfs/E/Jain_Dharm_Ki_Khahaaniya_Part-9_H.pdf

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ऐसा कथन कहाँ आया है ?

सब fix ही है क्रमबद्ध के अनुसार ही होने वाला है।

जैसे मुजे ahmedabad से मुम्बई जाना हो और में मेरे घर से निकलू ही नही और मेरे क्रमबद्ध में होगा तो में चला जङ्गम यहां से नही निकलूंगा तो निश्छित है में नही पोहचने वाला।अगर निश्छित होगा तो में घर से निकलूंगा और में टाइम से स्टेशन पोहच जाऊंगा।

उसी तरह हमे पुरुषार्थ ( तत्व निर्णय) तो निरतंर करना ही है। लेकिन श्रद्धा में ऐसा रखना है सब कुछ क्रमबद्ध के अनुसार हो रहा है । में तो मात्र ज्ञायक ही हुं।

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