Ye kalpana didi ne bataya tha… Ki jab hamare gharme kisi ki death ya birth hota hai to uss time hum jayda dukhi ya khush hote hai to tb hum utna dhyaan nh lagate bhakti me swadhyay me.
Yahan par parinamo ni sthirta ki baat hai. For example ki aapke ghar mein kisi ki death ho gyi to us samay mein aapke parinaam bahut hi vichlit hote hai yadi uss samay aap swadhayay karoge toh uss samay bhi aapka dimaag ussi taraf rahega toh ye ek prakar se jinwani ki avinay hui. Aise time pr parinamo ko sthir krna bahut mushkil hota hai isliye iss samay mein sutak aur paatak lgta hai.
But as far I know, Sutak Patak only happens on same blood relation.
Their might also be a possibility that our thoughts get inconsistent from the death of any non family member and stay consistent even after death of any family member with same blood relation (dur ka rishtedar).
But the Sutak is only acceptable in the latter case.
What if the relative lives in other country and we don’t have any feelings attached to him/her? Then also, will we consider not doing religious activities?
@Sowmay
It can be the case that our thoughts get inconsistent from the death of any non family member and stay consistent even after death of any family member with same blood relation but we are more related through thoughts to our relatives and anyone is not able to make a perfect policy. So, I think they made it only for relatives and only for three genrations.
Also, it’s not necessary that the inconsistency of thoughts stay for the exact days stated in the scriptures. If a baby is born in your family, the inconsistency of thought can last longer than 13 days, dame can be the case when someone close dies.
I too want to know the reference of the scripture in this regards.
Yes, the real reason for Sootak and Patak is inconsistency of thoughts and Feelings. And clearly, it can happen when our non-family deceases or otherwise. I have not come across any references from our scriptures regarding this. But, I think that this ritual is also gained from the Hinduism from the mughal-era.
@Sowmay@Mitali_Jain I thought sutak paatak was because of the ashuddhi that happens due to the death or birth of a person because back then in the 4th Era. Most infants were born in home only and most people died in home only(except those who took sallekhna).
हाँ, सूतक-पातक में दोनों बातें लागू होंगी–
1.परिणामों की अस्थिरता
2.अशुद्धता
●यदि क्षेत्र की दूरी हो, और उस व्यक्ति से परिणाम
बंधे हो, तो भी स्वाध्याय आदि नहीं करना
चाहिए।
● यदि उस व्यक्ति से परिणाम न बंधे हो तो भी क्षेत्र
की समीपता के कारण अशुद्धता होती है।
सूतक लग गया, अब मंदिर नहीं जाना तक ऐसा कहा-सुना तो बहुत बार, किन्तु अब इसका अर्थ भी समझ लेना ज़रूरी है !!!
सूतक
सूतक का सम्बन्ध “जन्म के” निम्मित से हुई अशुद्धि से है !
जन्म के अवसर पर जो नाल काटा जाता है और जन्म होने की प्रक्रिया में अन्य प्रकार की जो हिंसा होती है, उसमे लगने वाले दोष/पाप के प्रायश्चित स्वरुप “सूतक” माना जाता है !
जन्म के बाद नवजात की पीढ़ियों को हुई अशुचिता :-
3 पीढ़ी तक - 10 दिन
4 पीढ़ी तक - 10 दिन
5 पीढ़ी तक - 6 दिन
ध्यान दें :- एक रसोई में भोजन करने वालों के पीढ़ी नहीं गिनी जाती … वहाँ पूरा 10 दिन का सूतक माना है !
प्रसूति (नवजात की माँ) को 45 दिन का सूतक रहता है !
प्रसूति स्थान 1 माह तक अशुद्ध है ! इसीलिए कई लोग जब भी अस्पताल से घर आते हैं तो स्नान करते हैं !
अपनी पुत्री :-
पीहर में जनै तो हमे 3 दिन का,
ससुराल में जन्म दे तो उन्हें 10 दिन का सूतक रहता है ! और हमे कोई सूतक नहीं रहता है !
नौकर-चाकर :-
अपने घर में जन्म दे तो 1 दिन का,
बाहर दे तो हमे कोई सूतक नहीं !
पालतू पशुओं का :-
घर के पालतू गाय, भैंस, घोड़ी, बकरी इत्यादि को घर में बच्चा होने पर हमे 1 दिन का सूतक रहता है !
किन्तु घर से दूर-बाहर जन्म होने पर कोई सूतक नहीं रहता !
बच्चा देने वाली गाय, भैंस और बकरी का दूध, क्रमशः 15 दिन, 10 दिन और 8 दिन तक “अभक्ष्य/अशुद्ध” रहता है !
पातक
पातक का सम्बन्ध “मरण के” निम्मित से हुई अशुद्धि से है !
मरण के अवसर पर दाह-संस्कार में इत्यादि में जो हिंसा होती है, उसमे लगने वाले दोष/पाप के प्रायश्चित स्वरुप “पातक” माना जाता है !
मरण के बाद हुई अशुचिता :-
3 पीढ़ी तक - 12 दिन
4 पीढ़ी तक - 10 दिन
5 पीढ़ी तक - 6 दिन
ध्यान दें :- जिस दिन दाह-संस्कार किया जाता है, उस दिन से पातक के दिनों की गणना होती है, न कि मृत्यु के दिन से !
यदि घर का कोई सदस्य बाहर/विदेश में है, तो जिस दिन उसे सूचना मिलती है, उस दिन से शेष दिनों तक उसके पातक लगता है !
अगर 12 दिन बाद सूचना मिले तो स्नान-मात्र करने से शुद्धि हो जाती है !
किसी स्त्री के यदि गर्भपात हुआ हो तो, जितने माह का गर्भ पतित हुआ, उतने ही दिन का पातक मानना चाहिए !
घर का कोई सदस्य मुनि-आर्यिका-तपस्वी बन गया हो तो, उसे घर में होने वाले जन्म-मरण का सूतक-पातक नहीं लगता है ! किन्तु स्वयं उसका ही मरण हो जाने पर उसके घर वालों को 1 दिन का पातक लगता है !
किसी अन्य की शवयात्रा में जाने वाले को 1 दिन का, मुर्दा छूने वाले को 3 दिन और मुर्दे को कन्धा देने वाले को 8 दिन की अशुद्धि जाननी चाहिए !
घर में कोई आत्मघात करले तो 6 महीने का पातक मानना चाहिए !
यदि कोई स्त्री अपने पति के मोह/निर्मोह से जल मरे, बालक पढाई में फेल होकर या कोई अपने ऊपर दोष देकर मरता है तो इनका पातक बारह पक्ष याने 6 महीने का होता है !
उसके अलावा भी कहा है कि :-
जिसके घर में इस प्रकार अपघात होता है, वहाँ छह महीने तक कोई बुद्धिमान मनुष्य भोजन अथवा जल भी ग्रहण नहीं करता है ! वह मंदिर नहीं जाता और ना ही उस घर का द्रव्य मंदिर जी में चढ़ाया जाता है ! (क्रियाकोष १३१९-१३२०)
अनाचारी स्त्री-पुरुष के हर समय ही पातक रहता है
ध्यान से पढ़िए :-
सूतक-पातक की अवधि में “देव-शास्त्र-गुरु” का पूजन, प्रक्षाल, आहार आदि धार्मिक क्रियाएं वर्जित होती हैं !
इन दिनों में मंदिर के उपकरणों को स्पर्श करने का भी निषेध है !
यहाँ तक की गुल्लक में रुपया डालने का भी निषेध बताया है !
– किन्तु :-
ये कहीं नहीं कहा कि सूतक-पातक में मंदिरजी जाना वर्जित है या मना है !
श्री जिनमंदिर जी में जाना, देव-दर्शन, प्रदिक्षणा, जो पहले से याद हैं वो विनती/स्तुति बोलना, भाव-पूजा करना, हाथ की अँगुलियों पर जाप देना जिनागम सम्मत है !
यह सूतक-पातक आर्ष-ग्रंथों से मान्य है !
कभी देखने में आया कि सूतक में किसी अन्य से जिनवाणी या पूजन की पुस्तक चौकी पर खुलवा कर रखवाली और स्वयं छू तो सकते नहीं तो उसमे फिर सींख, चूड़ी, बालों कि क्लिप या पेन से पृष्ठ पलट कर पढ़ने लगे … ये योग्य नहीं है !
कहीं कहीं लोग सूतक-पातक के दिनों में मंदिरजी ना जाकर इसकी समाप्ति के बाद मंदिरजी से गंधोदक लाकर शुद्धि के लिए घर-दुकान में छिड़कते हैं, ऐसा करके नियम से घोरंघोर पाप का बंध करते हैं !
इन्हे समझना इसलिए ज़रूरी है, ताकि अब आगे घर-परिवार में हुए जन्म-मरण के अवसरों पर अनजाने से भी कहीं दोष का उपार्जन न हो !
बाकी सब तो ठीक, लेकिन इनके प्रमाण भी देना उचित रहेगा।
क्योंकि बिना प्रमाण के लोग इन नियमो को “समाज द्वारा थोपे गए है” ऐसा समझेंगे।
इसीलिए ग्रन्थ प्रमाण उपलब्ध कराएं।
पुस्तक के लिखे व छपाई से उसकी प्राचीनता तो सिद्ध हो गई।
किंतु संयम जी ये किसके द्वारा लिखित है यह तो कहीं लिखा ही नहीं है, सवाल पुनः वहीं पर आ गया रचनाकार कौन हैं??