वीर प्रभु का है कहना, राग में जीव तू मत फँसना ॥ टेक॥
अनादि काल से रुलता है, दृष्टि पर में करता है;
अब ना गलती तू करना, राग में जीव तू मत फँसना ॥१॥
तन-मन्दिर में देव हैं तू, ज्ञायक को पहिचान ले तू;
समयसार में तू रमना, राग में जीव तू मत फँसना ॥२॥
तू तो गुणों का सागर है, पूर्णानन्द महाप्रभु है;
निज में ही दृष्टि करना, राग में जीव तू मत फँसना ॥३॥
गुण पर्याय में भेद न कर, त्रैकालिक में दृष्टि कर;
मोक्षपुरी में है चलना, राग में जीव तू मत फँसना ।।४।।
Singer: @ADITI_JAIN