वीर महा महावीर जिनेसुर,
गौतम मान धनेसुर नाए।
बालक चाल में सील धरेसुर,
चन्दना देखत बन्ध खुलाए।
मेंढक हीन किये अमरेसुर,
दान सबै मनवांछित पाए।
‘द्यानत’ आजलौं ताही कौ मारग,
सागर है सुख होत सवाए ।
अर्थ :- महावीर जिनेश्वर के चरणों में महा विद्वान् गौतम ब्राह्मण ने भक्तिपूर्वक अपना सिर नवाया। भगवान् ने अपनी बाल्यावस्था में ही व्रत धारण कर लिये। भगवान के दर्शन मात्र से बन्धनों में पड़ी हुई चन्दनबाला के बन्धन खुल गये। मेंढक जैसे हीन प्राणी भी भगवान की भक्ति से देव बन गये और सबकी मनोकामना पूर्ण हो गई।
कविवर द्यानतराय कहते हैं कि उन्हीं भगवान महावीर का शासन आज तक चल रहा है। उनका धर्म-शासन सागर के समान है। उसे धारण करने की इच्छा मात्र से प्राणी के सुखों में वृद्धि होने लगती है।
Artist: कविवर द्यानतरायजी