वानी सुनि मन कैं हरष अपार | Vani suni man ke harsh apar

वानी सुनि मन कैं हरष अपार, चित कैं हरष अपार |
ज्यौं तिरषातुर अमृत पीवत, चातक अंबुद धार || टेक ||

मिथ्या तिमिर गयो ततखिन हो, संशय भरम निवार |
तत्वारथ अपने उर दरस्यौ, जानि लियो निज सार || १ ||

इन्द नरिंद फनिंद पदीधर, दीसत रैंक लगार |
ऐसा आनंद ‘बुधजन’ के उर, उपज्यौ अपरंपार || २ ||

Artist : कविवर पं. बुधजन जी