वंदन है उन मुनिवर को | Vandan hai un munivar ko

(तरज - खो ना जाए ये तारे जमीन पर )

देखो उन्हें जो है वन में विचरते
कर्मो की निर्जरा वो निरंतर है करते
गुणस्थानातीत से वो बाते है करते
नाज़ुक से बालक है मुनि बन गए है
वंदन है … उन मुनिवर को -२

वो तो सिंह जैसे वन में विचरते
सर्दी हो गर्मी हो ध्यनास्थ रहते
ज्ञान के दीपक को रोशन वो करते
जिनवर की वाणी को हाथो से रचते
वंदन है … उन मुनिवर को -२

निर्ग्रन्थ मुनि है दिगंबर
परिग्रह ना लेश है अंदर
वो तो रहते विषय कषायों से भी दूर
जिनमे ज्ञान की क्यारी न्यारी
और बाते बड़ी निराली
शुद्धोपयोग से प्यारा रिश्ता है कोई
वो तो रहते…
निजात्मा में…
और बाहृय ना विचरण करते
रहें अपनी ही शरण में
वंदन है … उन मुनिवर को -२

Artist- आत्मार्थी श्रुति जैन

10 Likes