वैभव से वैराग्य | Vaibhav Se Vairagya

आया है अवसर, आज सुहाना ।
आया महोत्सव, सब मिल गाना ।।
हे चक्रधर षटखंड जयकर आप दिग्विजयी हुए ।
नव निधि चौदह रतन के आप उपभोगी हुए ।।
रानियां छ्यानवे सहस के आप स्वामी हो गए ।
पर भेद विज्ञान से प्रभु मोक्षपथ गामी हुए ।।
देश देश के राजा आते, तव चरणों में शीश झुकाते।
जय त्रिभुवन के नाथ ।।

धरती अम्बर एक हुए है , जन जन के मन नाच उठे हैं ।
गाओ बधाईयाँ सब मिल के -2
बधाई गाओ रे , महोत्सव आयो रे।

पुण्योदय से कामदेव पद से भूषित हो स्वामी ।
मिली देह अनुपम सुंदर है, जग मोहित हो नामी ।।
जो भी देखे पलक न झपके, इकटक तुम्हे निरखता ।
किंतु आप निष्काम तत्त्व के रहते निश्चल ज्ञाता ।।
रूप तुम्हारा सबसे न्यारा, शिवकामिनी को वर करनारा ।
धन्य हुआ अवतार ।। धरती अम्बर एक हुए है…

अरे जगत के सब प्राणी हैं दुखी भूल निज वैभव को ।
सभी जीव जानें अपने, अनुपम चैतन्य स्वरूप को ।।
यह अद्भुत वात्सल्य देखकर तीर्थंकर प्रकृति आती ।
भव्य जीव सब करें प्रतीक्षा कब अमृत वाणी खिरती ।।
मोक्षमार्ग के नेता हो तुम, विश्व तत्त्व के ज्ञाता हो तुम ।
धन्य तुम्हारी वाणी ।। धरती अम्बर एक हुए है…

रे! रे! अचित्त दर्पण तू , क्यों दो - दो रूप दिखाता है ।
मैं सज धज कर आया हूं, तू नग्न दशा दिखलाता है ।।
क्या होनहार कुछ कहती, मत भोगों में अब फंसना ।
रे ज्ञान मुकुर भी मेरा, कुछ भव के दृश्य दिखाता ।।
तिल तुष मात्र परिग्रह तजकर, नग्न दिगंबर दीक्षा धरकर ।
शुद्धातम रस चखना ।। धरती अम्बर एक हुए है…

Lyrics by- Pt. Shri Abhay Kumar Ji, Deolali