उस बल की दरकार/ Uss Bal ki Darkar

मुझको है स्वामी, उस बल की दरकार ।
जिस बल को पाकर के स्वामी, आप हुये भव पार ॥ टेक ॥

अड़ी खड़ी हों अमिट अड़चने, आड़ी अटल अपार ।
तो भी कभी निराश निगोड़ी, फटक न पावे द्वार ॥ मुझे ॥ 1 ॥

सारा ही संसार करें, यदि मुझसे दुर्व्यवहार ।
हटे न तो भी सत्य मार्ग से, श्रद्धा किसी प्रकार ।मुझे ॥ 2 ॥

धन वैभव की जिस आँधी से, अस्थिर सब संसार ।
उससे भी न जरा डिग पाऊँ, मन बन जाये पहार | मुझे ॥ 3 ॥

असफलता की चोटों से नहिं, मन में पड़े दरार ।
अधिक-अधिक उत्साहित होऊँ, मानूं कभी न हार | मुझे ॥ 4 ॥

दुख दरिद्रता रोगादिक से, तन होवे बेकार ।
तो भी कभी निरूद्यम हो नहिं, बैहूँ जगदाधार । मुझे ॥ 5 ॥

देवांगना खड़ी हो सन्मुख, करती अंग विकार |
सेठ सुदर्शन सा मैं होऊँ, लगे नहीं अतिचार । मुझे ॥ 6 ॥

जिसके आगें तन बल धन बल, तृणवत् तुच्छ असार ।
पाऊँ प्रभु आत्मबल ऐसा, महामहिम सुखकार | मुझे ॥ 7 ॥

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