तुम्हें धरा पर | Tumhari Dhara par

तुम्हें धरा पर यदि जड़ता से प्यार है
तो चेतन बनने का क्या अधिकार तुम्हें है?
अरे! रूप पर मुग्ध शलभ-से टूटते
यौवन देते या तुम यौवन लूटते?
लूट लिया अब तक कितना संसार में
कितनी तृप्ति मिली रे! जड़ के प्यार में?
अरे! चर्म के रंध्रों में तब वासना
चर्मकार संज्ञा क्यों अस्वीकार तुम्हें है
तुम्हें धरा पर यदि जड़ता से प्यार है
तो चेतन बनने का क्या अधिकार तुम्हें है?
तप्त तवे की बूंद जिंदगी जा रही
किन्तु न सुख की गंध कहीं से आ रही
चलता जीवन पर प्रतिपल तूफान है
जग का दृष्टा अपने प्रति बेभान है
अरे! कूप में खड़े गगन को देखते
शर्म-शर्म धी पुंज अरे! धिक्कार तुम्हें है
तुम्हें धरा पर यदि जड़ता से प्यार है
तो चेतन बनने का क्या अधिकार तुम्हें है?
तेरी गरिमा गलती जड़ की प्रीति में
घूरे का अभिमान पाशविक रीति है
तू आनन्द-निकेतन बोधि-निधान रे
चिन्मय-काया का अमूर्त-परिधान रे
अरे! अमरता के पुतले ठहरो जरा,
विस्मय है हर कदम मृत्यु-आतंक तुम्हें है
तुम्हें धरा पर यदि जड़ता से प्यार है
तो चेतन बनने का क्या अधिकार तुम्हें है?

Artist: श्री बाबू जुगलकिशोर जैन ‘युगल’ जी
Source: Chaitanya Vatika