ज्ञाता स्वयं को जिन्हों ने है जाना,
जग के विभव को सदा भिन्न माना।
निर्ग्रंथपथ पर वो अविरल चले है,
अविरल चले है,अविरल चले है।।टेक।।
सिद्धों के सागर की सरिता बने हैं,
चिदानंद चेतन में लीन हुए हैं।
मुक्ति के पथ पर आगे बड़े हैं,
आगे बड़े हैं ,आगे बड़े हैं।।1।।
ज्ञान की धारा में थिर जो भए हैं,
एकत्व चिद्रूप ज्ञायक भजे हैं।
सौम्य सुमुद्रा मुनिवर धरे हैं,
मुनिवर धरे हैं,मुनिवर धरे हैं।।2।।
विनाशीक संसार क्षणता हैं जानी,
नग्न दिगंबर मुनि दीक्षा धारी।
लौकांतिक अनुमोदन को खड़े है,
मोदन खड़े है,मोदन खड़े हैं ।।3।।
नायक अम्बर