चतुर्थ गुणस्थान में आत्मानुभव

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Pandit Todarmal ji has also addressed this issue:

तथा द्रव्यानुयोगमें भी चरणानुयोगवत् ग्रहण-त्याग कराने का प्रयोजन है; इसलिये छद्मस्थ के बुद्धिगोचर परिणामों की अपेक्षा ही वहाँ कथन करते हैं। इतना विशेष है कि चरणानुयोग में तो बाह्यक्रिया की मुख्यता से वर्णन करते हैं, द्रव्यानुयोग में आत्मपरिणामों की मुख्यतासे निरूपण करते हैं; परन्तु करणानुयोगवत् सूक्ष्म वर्णन नहीं करते। उसके उदाहरण देते हैंः — उपयोग के शुभ, अशुभ, शुद्ध – ऐसे तीन भेद कहे हैं; वहाँ धर्मानुरागरूप परिणाम वह शुभोपयोग, पापानुरागरूप व द्वेषरूप परिणाम वह अशुभोपयोग और राग-द्वेष रहित परिणाम वह शुद्धोपयोग – ऐसा कहा है; सो इस छद्मस्थ के बुद्धिगोचर परिणामों की अपेक्षा यह कथन है; करणानुयोगमें कषायशक्ति की अपेक्षा गुणस्थानादि में संक्लेशविशुद्ध परिणामोंकी अपेक्षा निरूपण किया है वह विवक्षा यहाँ नहीं है।

- मोक्षमार्ग प्रकाशक, आठवाँ अधिकार, पृ. 285.

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