जन्मदिन किसका रे भाई!

भेदविज्ञान परक भक्ति

जन्मदिन किसका रे भाई !

जो दीखत है इन नैनन सों , सो पुद्गल परछाई ।
हाड़ - मांस अरु रुधिर की थैली , देखत ही घिन आई ।।1 ।।

देह देवालय में जो सोहे , सो है चेतनराई ।
सो तो अजर - अमर अविनाशी , जनमे नहीं कदाई ।।2 ।।

तन हाड़ , अरु ज्ञानमय चेतन का संयोग जब थाई ।
ये संयोग लख कहत मूढ़ जन , मेरा जनम है भाई ।।3 ।।

मैं तो ज्ञानमयी चिन्मूरत और अमूरत भाई ।
जनम - मरण से रहित ज्ञानमय , चेतन देत दिखाई ।।4 ।।

जन्मदिन किसका रे भाई !..

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इसका अच्छा audio बने ऐसी भावना है…

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इसके रचियेता का नाम क्या है?

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