गुणस्थान विवेचन प्रश्न ५३ में प्रत्याख्यानावरण चतुष्टक को सर्वघाति प्रकृति कहा है। लेकिन यह देशघाति क्यों नहीं है? क्योंकि इसके उदय में भी देशचारित्र प्रगट होता है।
यहाँ पर संज्वलन कषाय को सर्वघाति नहीं लिया है क्योंकि उसके उदय में भी सकल चारित्र उत्पन्न होता ही है।
गुणस्थान- मोह योग की तारतम्य अवस्था, परिणामों की दशा को स्पष्ट करने वाले, परिणामों के आधार पर बदलने वाले…
प्रत्याख्यानावरण कषाय कर्म को सर्वघाति कहना उचित है/-
• सर्वज्ञ प्रणीत
• प्रत्याख्यानावरण कषाय के सम्पूर्ण अभाव में ही छठवाँ गुणस्थान/सकल चारित्र प्रगट होता है, आंशिक उदय भी हो तो गुणस्थान गिर जाएगा।
संज्वलन को देशघाति इसलिए कहा, क्योंकि/-
• उसके उदय में भी सर्वदेश चारित्र का अभाव नही होता, आंशिक हानि तो है ही।
अविरत सम्यक्त्व में अन्नतानुबधि कषाय के अनुदय में सम्यक चरित्र प्रगट हुआ कहते है
क्योंकि सम्यक दर्शन,ज्ञान और चारित्र तीनो एक साथ ही प्रगट होते है
फिर भी इन्हें,और देशचारित्र को चारित्र में क्षयोप्शमिक नाम नही माना जाता क्योंकि अन्नतानुबधि,अप्रत्याख्यान, प्रत्याख्यान सर्वघाति प्रकृति है।
देश चारित्र की जैसे अन्नतानुबधि के अभाव में वासनकाल अनन्त काल का सिमटकर 6 महीना रह जाता है,अन्याय अनीति अभक्ष्य का पूर्ण रूप से अभाव हॉ जाता है।
यहां पर चारित्र प्रगट हुआ ही नही ऐसा नही है
उसी तरह अप्रत्याख्यानवरण कषाय में भी वासनकाल 6 महीना से सिमटकर 15 दिन का और प्रतिमा आदि लेने के भाव उतपन्न होते है।
यहाँ पर हमें अपेक्षा समझनी है सर्वघाति तो तीनो ही है परंतु एक तरफ युद्ध कर रहा है,स्त्री के साथ भोग भी कर रहा है और एक तरफ गृह आदि छोड़कर आर्यिका,क्षुल्लक एलक आदि स्थान को प्राप्त किया है दोनों तरफ सर्वघाति का उदय है परंतु इसमे भी असंख्यात भेद समजना।परंतु सकल चारित्र प्रगट नही हो रहा है इसीलिए सर्वघाति कहा है,जीव को पूर्ण वीतरागता करने में बाधक रूप है,
अगर हम ज्ञानावरण के साथ तुलना करें तो किंचित भी क्षयोपशम ज्ञान पूर्ण वीतरागता प्रगट करने में पूर्ण रूप से सहायक है,इसीलिए वह देशघाती है
= प्रश्न - यदि ऐसा माना जाये (कि प्रत्याख्यानावरण चतुष्क के उदय के सर्व प्रकार के चारित्र विनाश करने की शक्ति का अभाव है) तो प्रत्याख्यानावरण कषाय का सर्वघातीपन नष्ट हो जाता है? उत्तर - नहीं होता, क्योंकि प्रत्याख्यानावरण कषाय अपने प्रतिपक्षी सर्व प्रत्याख्यान (संयम) गुण को घातता है, इसलिए वह सर्वघाती कहा जाता है। किंतु सर्व अप्रत्याख्यान को नहीं घातता है, क्योंकि इसका इस विषय में व्यापार नहीं है।