जो इच्छा का दमन न हो तो

जो इच्छा का दमन न हो तो, चारित्र से शिव गमन नहीं रे।।टेक।।

अन्न त्याग से मुक्ति होय तो, भिक्षुक लंघन करत रही रे।
नीर तजै भव पीर कटै तो, मृग तृष्णा-वश जान दई रे ।।1।।

बिन बोले ते मौनी हो तो, बगुला बैठो मौन गही रे।
नाम जपै निज नाथ मिलै तो, तोता निशदिन रटत वही रे ।।2।।

वस्त्र त्याग अरु वन निवास तें, जो होवै सो साधु कही रे।
तो पशु वस्त्र कभी नहीं पहिनत, वन में आयुष बीत गयी रे ।।3।।

काया कृष कर कृत नहीं होवै, जो इच्छा नहीं दमन भई रे।
‘भोमराज’ जो ताहि दमत है, सो पावै है मोक्ष मही रे ।।4।।

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