प्रभु तेरी महिमा
प्रभु तेरी महिमा किहि मुख गावैं
गरभ छमास अगाउ कनक नग सुरपति नगर बनावैं ॥ टेक ॥
क्षीर उदधि जल मेरु सिंहासन,
मल मल इन्द्र न्हुलावैं ।
दीक्षा समय पालकी बैठो,
इन्द्र कहार कहावैं ॥१॥
समोसरन रिध ज्ञान महातम,
किहिविधि सरब बतावैं ।
आपन जातबात कहा शिव,
बात सुनैं भवि जावैं ॥२॥
पंच कल्यानक थानक स्वामी,
जे तुम मन वच घ्यावैं ।
‘द्यानत’ तिनकी कौन कथा है,
हम देखें सुख पावैं ॥३॥