अनंतानुबंधी कषाय कर्म चारित्र मोहनीय की प्रकृति है तो अनंतानुबंधी क्षय से कौन सा चारित्र प्रकट होता है?
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जी वैसे तो इस प्रश्न का ये उत्तर नही है लेकिन आगामी प्रश्नों के उत्तर इसी में समाहित हैं तो ये तो अवश्य मननीय है।
बाकी अनन्तानुबन्धी के अभाव में/-
• रहता तो जीव को व्रत के अभाव रूप असंयम ही है और
• परन्तु जितने अंश में कषाय का अभाव हुआ उतने अंश में वीतरागता रूप सम्यक चारित्र प्रकट निश्चितरूपेण हुआ है।
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