श्रावक के अष्ट मूलगुण

श्रावक के लिए बताये अष्टमूलगुन में मांस मदिरा का त्याग तो कहा है पर जमीकंद का क्यों नहीं कहा ?

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भगवती आराधना/1533/1414
ण य खंति … पलंडुमादीयं। = कुलीन पुरुष … प्याज, लहसुन वगैरह कंदों का भक्षण नहीं करते हैं।

-प्रस्तुत गाथा का अंश प्रत्येक श्रावक के लिए सन्देश सूचक है कि जमीकंद आदि पदार्थ, जिनाम्नाय के अनुचारियों को खाने क्या कहने योग्य भी नही है, इसी कारण श्रावक के अष्ट मूलगुणों में इन्हें शामिल नही किया गया। परन्तु वर्तमान समय मे इन्ही की बहुलता होने के कारण साधु-संत जमीकंद का त्याग सर्वप्रथम करातें हैं और हम भी बालकों को जमीकंद का त्याग करना मूलगुण पालन के समान उत्कृष्ट ठहराते हैं।

जमीकंद मांस मे ही गर्भित हो जाता है

क्षमा कीजियेगा, लेकिन जमीकंद और माँस एक वस्तु नही है।-

• जमीकंद भले ही अनन्त निगोदिया जीवों का शरण स्थान हो, लेकिन वह मांस की श्रेणी में नही लिया जा सकता है। (भावावेश में हम भी इसके त्याग की महानता को बतलाने हेतु इसकी तुलना माँस से भले ही कर देतें हों!)

• माँस किसे कहें? ~आगम में दो इन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय जीवों के शरीर के कलेवर को मांस संज्ञा दी गयी है, एकेन्द्रिय जीव का शरीर माँस की संज्ञा प्राप्त नही करता। क्योंकि वह स्वयं मांस-रक्त आदि सप्त धातुओं से रहित होता है।

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From the same logic , was Meat and alcohol was edible? It is not considered good in today’s scenario by many non jains too. So why these were considered but not Jamikamd.

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:point_up_2:इसमें थोड़ा इशारा मिलता है कि आलू इत्यादि ये जमीकंद मुख्यतः बाहर से आये हैं, इसलिए पुराने समय मे इनके बारे में ज्यादा लोग नही जानते होंगे, लेकिन शराब और माँस को बाहर से आने की जरूरत नही पड़ी, सदियों से लोग इनसे चित-परिचित हैं।
बाकी चिंता का विषय मूल में ये है कि इतनी जागरूकता होने पर भी जीव इन्हें त्यागता क्यों नही है?

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राग और उस विषय संबंधित गृद्धता के कारण… विषय सुख ही रुचिकर भासित होते हैं; सो क्या करे? होनहार ही खोटी है।

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