उद्दिष्ट आहार क्या होता है ? क्या श्रावक कभी मुनि के उद्देश्य से आहार नही बनाता?
उद्दिष्ट के लिए यह देखें।
In short
प्र.सा/त.प्र.229 समस्तहिंसायतनशून्य एवाहारो युक्ताहारः।
= समस्त हिंसाके निमित्तोंसे रहित आहार ही योग्य है।
- उपर्युक्त बात को देखते हुए, औद्देशिक आहार को ग्रहण न करने का विधान हैं, क्योंकि उसमें होने वाली हिंसा का श्रेय मुनि को जाएगा।
इसमें कुछ conditions भी हैं /-
• वैसे तो बिना उद्देश्य के ही भोजन बनाने का विधान है, जैसा भोजन (पूर्ण शुद्ध) श्रावक स्वयं के लिए बनाए, उसी में से यदि कोई मुनिराज आदि आहार हेतु पधारें, तो उन्हें भी कराये, यही अतिथि संविभाग व्रत के निर्देश हैं।
• यदि मुनिराज का स्वास्थ्य खराब हो, तो इसमें भी आचार्य स्वयं श्रावकों से सम्पर्क करके उन्हें निर्देश देते हैं, कि अमुक मुनिराज की तबियत खराब है, इनके आहार में आप इस-इस प्रकार से changes करें या औषधि मिलायें…
(यहाँ दोष नही है), यद्यपि यह उद्दिष्ट प्रतीत होता हो तो भी…!
• यदि मुनिराज एकलविहारी हैं, तो श्रावक स्वयं अपने विवेक से मुनिराज के स्वास्थ्य के अनुकूल व्यवस्था करता ही है, यहॉं भी उद्देश्य प्रकट दिखाई देता हुआ भी दोष प्रतीत नही होता।
• जहाँ उद्देश्य की बात आती हैं, वहाँ मेरे विचार से आडम्बर, स्वयं की दैनिक असावधानी, अतिथि-संविभाग व्रत के उल्लंघन…इनका विचार करके बात है।
उपर्युक्त परिस्थितियाँ सभी के साथ नही होती, इसलिए वहां तो जैसा राजमार्ग है, उसी के अनुसार प्रवृत्ति होगी।
@Sayyam …Ji pls correct if I am wrong…
@Sanyam_Shastri अभी कुछ भी कहने में असमर्थ हूँ।
क्षमा!
अर्थात उपर्युक्त परिस्थितियों के अलावा यदि श्रावक अपनी दैनिक चर्या से हटकर मुनि के उद्देश्य से आहार बनाये तो वह उद्दिष्ट कहलाता है ?
जी, बात तो यही है, आप किसी ओर तरफ इशारा कर रहें हैं, तो वह बतायें।
जी नही , मेरा कोई और उद्देश्य नही है । मात्र निष्कर्ष पर पहुँचना चाहता था।
आपको उदिष्ट संबंधित समस्त जानकारी ये संयम प्रकाश ग्रंथ की उदिष्ट संबंधित छोटी सी pdf में मिल जाएगी।
https://drive.google.com/file/d/1Ax4eSJ1bF51K5saX_E0vFYPgg0FoZugV/view?usp=drivesdk
संयम प्रकाश की पूरी पुस्तक है क्या?