परिणाम कैसे सुधारें/ स्वाध्याय

ये प्रश्न सभी का रहता है , उत्तर भी सभी अपने हिसाब से खोजते है परन्तु परिणामो पर हम कहाँ अपना वश रख पाते हैI

परिणामो पर दृष्टी देने की जगह यदि हमारा लक्ष्य सम्यक निर्णय करने का हो तो फल स्वरूप परिणाम भी अवश्य सुधर जायेंगेI

सामान्यतया हम क्रिया सुधारने पर जोर देते है, थोडा आगे बढ़ने पर परिणाम की भी बाते करते है, उसके बाद अभिप्राय और यदि थोडा और आगे चले तो अपरिणामी तत्त्व की चर्चा भी करते है I इतना सब करने पर भी परिणामो पर नज़र करने पर खास फर्क दिखाई नहीं देता है I कहीं तो गलती चल रही है, कहाँ?

हमारा संपूर्ण समय शक्ति और ज्ञान का उपयोग वस्तु स्वरुप के निर्णय पर होना चाहिए , स्व पर का निर्णय , हित अहित का निर्णय- यही सबसे ज्यादा जरूरी है I गुणस्थान प्रमाण परिणामो को आने से रोकने का प्रयास सही नहीं है , सतत भेद ज्ञान के अभ्यास के फल स्वरुप वस्तुस्वरुप का निर्णय अपनी भूमिका/गुणस्थान को आगे बढ़ाएगा I वहाँ स्वयमेव ही परिणाम, पूर्व की अपेक्षा सुधरे हुए होते हैI

तत्त्व अभ्यास ही एक मात्र कर्त्तव्य है , परिणाम सुधरना तो उसका फल आता ही आता है I जैसे बीज को बोने के बाद उसका विधि पूर्वक समय पर सिंचन करते रहने के बाद फल की चिंता नहीं करते है , वह तो आएगा ही। उस ही प्रकार तत्त्वनिर्णय के फल स्वरुप परिणाम स्वयमेव सुधरेंगे ही सुधरेंगे,उनका अलग से विचार नहीं करना पड़ेगा।

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