अपेक्षाओं से कैसे बचें

  • अपेक्षा का मूल कारण - जिसको जिसमें/जिससे जितनी सुख की कल्पना होती है, उसको उसमें/उससे उतनी अपेक्षाएं जन्म लेती हैं।
    (इसे काफी practically विचार करना पड़ेगा, analysis करके इसकी validity स्वयं देखना पड़ेगी)
  • अपने जीवन में भी और जगत में भी एक बात देखी जाती है कि अपेक्षा उनसे ही होती है जिनसे अपनत्व होता है (वह अपनत्व किसी भी रूप में हो सकता है), अतः अपनत्व के अभाव में ही अपेक्षाओं का अभाव संभव है। स्व की पहचान पूर्वक उसी में संतुष्ट होने पर स्व में अपनत्व भी आएगा और पर से अपनत्व का भी अभाव होगा। फलतः अपेक्षाओं का भी स्वयमेव अभाव होगा।

Some important points regarding this-

  • मिथ्यात्व से पर में सुख बुद्धि होती है और भूमिकानुसार विद्यमान कषाय से सुख का विकल्प होता है।
  • जब प्रयास सुख बुद्धि तोड़ने का होगा तब धीरे-धीरे पर में सुख के विकल्प ढीले भी स्वयमेव होंगे और विशुद्धता के बढ़ने पर उनका घटना भी होगा।
  • अपेक्षा का होना एक कार्य है, उसका कारण जब तक विद्यमान है तब तक वो कार्य भी होगा ही।
  • भूमिका के योग्य विकल्प होते ही हैं, अतः भूमिका को ऊंची करने का पुरुषार्थ करना श्रेयस्कर है। भूमिका के योग्य होने वाले विकल्पों से बलजोरी करने का प्रयास निरर्थक है।
  • उन विकल्प से भी सदा भेदज्ञान करना योग्य है।

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