परिणाम कैसे सुधारें/ स्वाध्याय

हम रोज जिनवाणी में पढ़ते हैं की हम जीव हैं और हमारा स्वरुप जानना-देखना है | फिर भी हम अपने को शरीर मान रहे हैं और पर-पदार्थो में राग-द्वेष कर रहे हैं |
कदापि कभी-कभी हमे ये ख्याल आजाता है की ये राग परिणति अच्छी नहीं, हमे इसे कम करना चाहिए | लेकिन वो विकल्प भी कुछ समय बाद चले जाता है |
हम कैसे अपने परिणाम सुधारें और जो कुछ समय का राग-द्वेष नहीं करने का विकल्प है उसको बढ़ाए |

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बहुत ही विचारणीय बात है यह।
हम परिणाम सुधारने के लिए प्रयास तोह बहुत करते है परंतु कुछ समय बाद भौतिक दूनिया की ओर खिंचे चले जाते है।

इससे बचने के लिए हम कुछ उपाय जरूर कर सकते है।
जैसे -

  1. हर कार्य को विवेक पूर्वक, यत्नाचार पूर्वक करें।
  2. जो स्वाध्याय हम करते है उसका प्रति समय चिंतन करते रहें।
  3. हर कार्य निति पूर्वक किया जाए।
  4. सच्चे देव शास्त्र गुरु में, सात तत्वों में दृढ़ श्रद्धा रखें।
  5. दैनिक कार्यों में धार्मिक कार्यों को कदापि ना भूलें।
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भूमिकानुसार विकल्प आते हैं और जो विकल्प आने हैं उनको रोकना हमारे हाथ मे नही है । अब जो विकल्प आ गए उनके संबंध में चिंतन करना ये तो पूर्णतया अनुचित है। बल्कि जो विकल्प आ गया उसे मात्र स्वीकार करके यदि जाने दिया जाए तो आगे के समय मे उपयोग को कही और लगाया जा सकता है। फिर भी अपने उपयोग को बाहरी कार्यों में लगाने की बजाय उसे शुभ क्रिया आदि में बुद्धि पूर्वक लगाने की कोशिश करें।
इसका उपाय सिर्फ एक है - स्वाध्याय

अध्ययन तज श्रद्धान प्रबल कर, श्रवण अल्प चिंतन बहु करना।
छली मुखोटे इस दुनियाँ में , निज मुख को निज सम्मुख करना।।

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@anubhav_jain स्वाध्याय में मन ज्यादा देर नही टिकता तो उसके लिए कौनसी जिनवाणी पढ़नी चाहिए? कितनी देर स्वाध्याय करना चाहिए? कृपया समझाइये।

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करणानुयोग का जैन भूगोल । विषय मे बहुत सूक्ष्मता होती है इसलिए उपयोग रुचि अनुसार अपने आप स्थिर हो जाता है। और नई जानकारी मिलने के कारण पढ़ने का उत्साह भी बना रहता है। लेकिन किसी के guidance में रह कर पढ़ें तो ज्यादा बेहतर होगा।

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Well said by @anubhav_jain

Pt. Pravar Todarmal Ji also have a perfect approach for those who think Karnanuyog is hard:

Image - Moksh Marg Prakashak (pg - 291) - Karnanuyog me Dosh Kalpana ka Nirakaran.

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Yeah that’s true. I can say that by my own experience. The interest and the curiosity developed while learning Karnanuyog is really amazing.

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Hum agar prabhu darshan me din ka half hour nikal rahe he aur sansarik pravruti me 8-9 hours to sansarik pravruti ka prabhav hum or jyada rahega. Vaise hi hum agar swadhyay me jyada samay pasar kar rahe he to hamare parinam us tarah rahenge. To agar hum apna samay sahi pravruti me lagae or baki samay me hamari soch usi tarah se rakhne ka prayatn kare to dhire dhire parinam sudharenge. I think we need to practice this. Its not a one day process.

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ये प्रश्न सभी का रहता है , उत्तर भी सभी अपने हिसाब से खोजते है परन्तु परिणामो पर हम कहाँ अपना वश रख पाते हैI

परिणामो पर दृष्टी देने की जगह यदि हमारा लक्ष्य सम्यक निर्णय करने का हो तो फल स्वरूप परिणाम भी अवश्य सुधर जायेंगेI

सामान्यतया हम क्रिया सुधारने पर जोर देते है, थोडा आगे बढ़ने पर परिणाम की भी बाते करते है, उसके बाद अभिप्राय और यदि थोडा और आगे चले तो अपरिणामी तत्त्व की चर्चा भी करते है I इतना सब करने पर भी परिणामो पर नज़र करने पर खास फर्क दिखाई नहीं देता है I कहीं तो गलती चल रही है, कहाँ?

हमारा संपूर्ण समय शक्ति और ज्ञान का उपयोग वस्तु स्वरुप के निर्णय पर होना चाहिए , स्व पर का निर्णय , हित अहित का निर्णय- यही सबसे ज्यादा जरूरी है I गुणस्थान प्रमाण परिणामो को आने से रोकने का प्रयास सही नहीं है , सतत भेद ज्ञान के अभ्यास के फल स्वरुप वस्तुस्वरुप का निर्णय अपनी भूमिका/गुणस्थान को आगे बढ़ाएगा I वहाँ स्वयमेव ही परिणाम, पूर्व की अपेक्षा सुधरे हुए होते हैI

तत्त्व अभ्यास ही एक मात्र कर्त्तव्य है , परिणाम सुधरना तो उसका फल आता ही आता है I जैसे बीज को बोने के बाद उसका विधि पूर्वक समय पर सिंचन करते रहने के बाद फल की चिंता नहीं करते है , वह तो आएगा ही। उस ही प्रकार तत्त्वनिर्णय के फल स्वरुप परिणाम स्वयमेव सुधरेंगे ही सुधरेंगे,उनका अलग से विचार नहीं करना पड़ेगा।

Have put my views… response will be admired…

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The first step should be to accept your bad habits and thoughts and develop a feeling of guilt for doing so.

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That is also because of Mithyatva. We need to do constant efforts to attain Self Realization(Samyak Darshan). It is not an easy task, we need to devote ourselves. We need to do Swadhayay. If somebody is doing Swadhyay, then also he/she is feeling the same, he/she needs to increase the time of Swadhyay. Not only doing Swadhayay will suffice. We also need to understand it properly and think of that later too. We need to think of ourselves as soul and not the body. We also need to accept that also. If we do read it, it is called knowledge, but if we don’t accept it, it won’t be called faith.

Acharya KundKund said,
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So, we also need to have faith on 7 tatva. Only knowing them will not Suffice.

A Samyak Drishti (self realized) always have faith on them till the being is having Samyak Darshan.

Source: 3rd Gatha of Granth Acharya Kund Kund ke Kundan.

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