गुणस्थान श्रेणी में कषायों की मंदता सम्बंधित प्रश्न

गुणस्थान विवेचन की अपूर्वकरण गुणस्थान के शुरू में “श्रेणी” की परिभाषा व्यक्त है जो इस प्रकार है:

प्रश्न यह है की श्रेणी में २१ प्रकृतियों का वर्णन क्यों लिखा है? [ (अप्रत्याख्यानावरण, प्रत्याख्यानावरण, संज्वलन) x ४ + (९ नोकषाय)].

क्यूंकि ७वे गुणस्थान में ही ३ * ४ = १२ कषायों का तो उपशम/क्षय हो ही जाता है। ८वे से १०वे में तो केवल संज्वलन कषाय की ही मंदता के निमित्त से विशुद्धि बढ़ती है। तो फिर २१ प्रकृतियों का वर्णन क्यों किया? असल में तो केवल १३ प्रकृतियों का ही वर्णन होना चाहिए था? [ संज्वलन * ४ + ९ नोकषाय].

@Sayyam @Sanyam_Shastri @Kishan_Shah

1 Like

श्रेणी के समय के गुणस्थानों में (मुनि अवस्था में) उदय तो १३ का ही रहता है, परन्तु श्रेणी की चर्चा में- श्रेणी चढ़ते समय किन किन कर्मों का उदय रहता है, कितने सत्ता में विद्यमान रहते है और सत्ता में विद्यमान कुल कर्मों में से कितने कर्मों के उपशम और क्षय होते है- इन सब का वर्णन आता है।
और सत्ता में विद्यमान कर्मो(दर्शन मोहनीय की ३ और चारित्र मोहनीय की अनंतानुबधी की ४ के अलावा समस्त मोहनीय) की संख्या २१ होने के कारण यहां २१ प्रकृतियों का वर्णन किया है।

छठे और सातवे गुणस्थान में क्षयोप्शामिक भाव पाया जाता है |

प्रश्न - क्षायोपशमिक किस प्रकार है ? उत्तर - १. क्योंकि वर्तमान में प्रत्याख्यानावरण के सर्वघाती स्पर्धकों के उदय क्षय होने से और आगामी काल में उदय में आने वाले सत्ता में स्थित उन्हीं के उदय में न आने रूप उपशम से तथा संज्वलन कषाय के उदय से प्रत्याख्यान अर्थात् संयम उत्पन्न होता है इसलिए क्षायोपशमिक है। [बिलकुल इसी प्रकार अप्रमत्त गुणस्थान भी क्षायोपशमिक है - (ध.१/१,१,१५/१७९/२)] (ध.५/१,७,७/२०३/१)।

यहाँ पर प्रत्याख्यानावरण और संज्वलन का क्षायोपशम पाया जाता है|और उपशम श्रेणी में सभी कषायों का उपशम पाया जाता है| इनकी उद्ययावली में दर्शनमोहनीय और अनन्तानुबंधि के अलावा 21 प्रकृति पाई जाती है।इसी लिए 21 का उपशम कहा।

4 Likes