तर्ज- जपि माला जिनवर नाम की…
हम देखी प्रभा मुनिराज की।
चित्त उछल कपि-सम सुख मारे, सिद्धि भई निज काज की ।।टेक।।
ज्यों गौरी पय सहजहिं उपजे, सहल हि नूर सिराज की।
त्यों अनुभव रस झूरें मुख तें, औषधि ह्वै भव खाज की ।।1।।
जगत छोड़ि निज आतम ही में, दृष्टि धरें ज्यों बाज की।
मन कपि वश करि तीन रतन सौं, नींव धरी शिव राज की ।।2।।
‘समकित’ बुध संजम झंझा से, पलटी दिशा जिहाज की।
भव को सिरा निकट ही तिष्ठै, जय जय तिन अधिराज की ।।3।।
मंगलार्थी समकित जैन, ईसागढ़
प्रेरणा- स्व० पं० भागचन्द जी, ईसागढ़