भाषा का भी अपना एक अलग महत्त्व है एवं जैन ग्रंथों को यदि भाषा की दृष्टि से पढा जाए तो इसमें कोई शक नही कि वे भाषा के स्तर पर भी अधिक ही साबित होंगे । मात्र दिगम्बर ही नही अपितु श्वेताम्बर ग्रन्थ भी उच्च कोटि में गिने जाते हैं ।अतः श्वेताम्बर न्याय ग्रंथ भी अपने आप मे कुछ अपूर्वताओं को लिए हुए हैं , उन्ही में से एक उदाहरण प्रस्तुत कर रहा हूँ ।-
असत्यअमृषा ( व्यवहार ) भाषा के 12 प्रकार ।
-
आमंत्रणी भाषा - ’ हे देव !, यहाँ आओ ’ , इस
प्रकार के वचनों को आमंत्रणी भाषा है । -
आज्ञापनी भाषा - ’ तुम यह करो ’ , इस प्रकार
के आज्ञा सूचक वचन कहना , आज्ञापनी भाषा है । -
याचनी भाषा - ’ यह दो ’ इस प्रकार याचना के
सूचक वचन बोलना , याचनी भाषा है । -
प्रच्छनी भाषा - अज्ञात अर्थ को पूछना , प्रच्छनी
भाषा है । -
प्रज्ञापनी भाषा - ’ जीव हिंसा से निवृत्त होकर
चिरायु का उपभोग करता है , इस प्रकार शिष्यों के
उपदेश सूचक वचनों को कहना । -
प्रत्याख्यानी भाषा - मांगने वाले को निषेध करने
वाले वचनों को बोलना । -
इच्छानुकूलिका भाषा -किसी कार्य में अपनी
अनुमति देने को इच्छानुकूलिका भाषा कहते हैं । -
अनभिग्रहीता भाषा - ’ बहुत से कार्यों में जो तुम्हे
अच्छा लगे वह करो ’ , इस प्रकार के वचनों को
अनभिग्रहीता भाषा कहते हैं । -
अभिगृहीता भाषा - ’ बहुत से कार्यों में अमुक
कार्य करना चाहिए ’ इस प्रकार निश्चित वचनों के
बोलने को अभिगृहिता भाषा कहते हैं । -
सन्देहकारिणी भाषा - संशय उतपन्न करने
वाली भाषा को सन्देहकारिणी भाषा कहते हैं ,
जैसे ‘सैंधव’ कहने पर सिंधा नमक और घोड़ा
पदार्थ दोनों पदार्थों में संशय उत्पन्न होता है । -
व्याकृता भाषा - जिससे स्पष्ट अर्थ का ज्ञान हो
, वह व्याकृता भाषा है । -
अव्याकृता भाषा - गंभीर अथवा अस्पष्ट अर्थ
को बताने वाले वचनों को अव्याकृता भाषा
कहतें हैं ।
★★★
भगवती आराधना 1195-1196 में भी 9 प्रकार से भाषाओं के भेद की चर्चा आई है ।
- आमन्त्रणि
- आज्ञापनी
- याचनी
- प्रश्नभाषा
- प्रज्ञापनी
- प्रत्याख्यानी
- इच्छानुलोमा
- संशय
- अनक्षर भाषा ।
( इसी प्रकार से , गोम्मटसार जीवकाण्ड , 224-225 में भी 9 प्रकार से भेद बताएं हैं )
भाषा ज्ञान संबंधी विशेष जानकारी हेतु -
http://www.jainkosh.org/wiki/भाषा
विद्वज्जनों से निवेदन है , अपने विचार प्रेषित करें !!
धन्यवाद ।
संयम शास्त्री " दिल्ली "