प्रक्षाल एवं अभिषेक

  1. प्रक्षाल की परंपरा कब से प्रारंभ हुई?
  2. प्रक्षाल एवं अभिषेक में अंतर?
  3. प्रक्षाल की विधि के दौरान होने वाली भूलें?
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जिनागम के परिपेक्ष में अभिषेक व प्रक्षाल

  1. तिलोय पण्णत्ति - स्तूपों का वर्णन करते समय आचार्य यतिवृषभ देव ने लिखा है कि “भव्य जीव इन स्तूपों का अभिषेक , पूजा और प्रदिक्षणा करते हैं।”
    दीहत्तसंदमाण ताणं संपई पणट्ठउएवसं ।
    भव्वा अभिसेयच्चणपदाहिणं तेसु कुव्वंति।।847।।

  2. आदिपुराण - चैत्य वृक्षों के मूलभाग में चारों दिशाओं में जिनेन्द्र देव की 4 प्रतिमाएं थीं ,जिनका अभिषेक इंद्र स्वयं करते हैं।।195।।…22वां अधिकार

  3. सर्वार्थसिद्धि - 9वें अध्याय के 2 सूत्र की टीका में आचार्य देव "संवर के कारण में मात्र गुप्ति को ही कहा है। तीर्थयात्रा करना अभिषेक करना ,दीक्षा देना, उपहार स्वरूप सिर को अर्पण करना ,देवता की अराधना करना आदि के द्वारा संवर नहीं होता है ।

    अभिषेक करने से संवर का निषेध किया है ।अभिषेक करने का नहीं। उपर्युक्त कथन से यह भी स्पष्ट हो जाता है कि अभिषेक तो होता है ; परन्तु अभिषेक से संवर नहीं होता है।

    उपर्युक्त कथन से यह सिद्ध होता है कि अभिषेक तो होता है।

4)रत्नकरण्ड श्रावकाचार वचनिका में पृष्ट 200 पर पूजा के भेद , विधि और प्रयोजन के अंतर्गत लिखा है कि "अरिहंत के प्रतिबिंब के पूजन के लिए…भक्ति सहित ,उज्ज्वल निर्दोष जल के द्वारा अरहंत के प्रतिबिम्ब का अभिषेक करना वह भी पूजन है।

तथा पृष्ट 411 पर समवशरण वर्णन के अंतर्गत मानस्तम्भ में स्थित जिनेन्द्रकी प्रतिमाओं का देवगण क्षीर सागर के जल से अभिषेक करते हैं।

निष्कर्ष :- आगम में अभिषेक शब्द को भी स्वीकार किया गया है जो उपर्युक्त प्रमाणों से स्पष्ट है। जिनागम में मात्र प्रक्षाल है ऐसा कहकर अभिषेक का निषेध नहीं करना चाहिए ।

इसके विरुद्ध यह बात प्रस्तुत की जाती है कि मुनिराज ही स्नान नहीं करते है, तब अरिहंत देव का न्हवन (अभिषेक)कैसे कर सकते हैं?

हाँ ,आपकी बात एकदम सत्य है ;परंतु अरिहंत देव का शरीर परमौदारिक होता है , जो संपूर्ण मल से रहित होता है,परंतु यहाँ प्रतिमा है , जिसकी स्वच्छता हेतु अभिषेक और प्रक्षाल किया जाता है।

इससे कोई स्वच्छंदी होकर भगवान का अभिषेक आधा -आधा ,एक-एक घण्टे तक ,अपरिमित जल से अभिषेक करे तो भी योग्य नहीं है।

अभिषेक मात्र दिनभर में आए हुए रजकणों को परिमार्जित करने हेतु सीमित एवं थोड़े जल से अभिषेक करना चाहिए।

यहाँ प्रक्षाल का निषेध नहीं किया गया है ; अपितु यह बताया है कि अभिषेक भी जिनागम में मान्य है।

--   अमन जैन शास्त्री

एक प्रमाण और प्राप्त हुआ है उसे यहाँ प्रेषित कर रहा हूँ|
चारित्रसार ग्रन्थ में (पेज 149) वर्णन प्राप्त होता है कि - चल प्रतिमा की अभिषेक वंदना होती है| चलप्रतिमाया अभिषेकवंदना स्यात्

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देवगण अकृत्रिम प्रतिमाओं का अभिषेक क्यों करते है?

कुल परम्परा से

विकास जी यह कौन से ग्रंथ का प्रमाण है कृपया ग्रंथ का नाम बता दें।