प्रक्षाल एवं शांति-धारा सम्बन्धी

वाह!,
ऐसे विषय आने ही चाहिए, बहुत बहुत साधुवाद।

इन विषयों पर पहले भी चर्चा तो हुई है।

शास्त्र प्रमाण तो ज्ञात नही, लेकिन यदि प्रक्षाल का औचित्य यदि ख्याल में आ जाये, तो ये भी ध्यान आ जाता है, कि एक ही बार करना उचित है, वह भी एक नियत समय पर।


इस संदर्भ में डॉ सुदीप जी दिल्ली, वालो ने भी एक शोधात्मक पुस्तक लिखी है, जो अवश्य पढ़ने योग्य है।

प्रमाण बड़ा या विवेक :point_down:

https://drive.google.com/file/d/1VmjUpjctZSVjR7CcteSqIVcQ61Cz-v8b/view?usp=drivesdk


• शांतिधारा मूल में रोज-रोज करने का विधान नही है, महायज्ञ (पूजन/विधान) के पश्चात कुंड में धारा दी जाती है, अखण्ड रूप से, उसका नाम शांतिधारा है।

• शांतिधारा अपने यहाँ आयी है, लेकिन स्थान भिन्न है, जैनाचार्यों की बात को एकदम से ठुकराया नही जा सकता, एवं यंत्र पर भी शांतिधारा का विधान है।

• निषेध उस परम्परा का नही, निषेध उस परम्परा में होने वाली विकृति का है, कि इसके नाम पर जो लाखों रुपया इकट्ठा करने का जो व्यापार सा ही बन गया है, निषेध इस बात का है, कि इससे जीवन मे शांति आजायेगी, निषेध इस बात का है, कि इसको ही धर्म मानना, निषेध इससे अपने मिथ्यात्व के पोषण करने का है, निषेध विकृति के प्रचार-प्रसार का है।

• नही तो, अपने यहाँ पंच कल्याणकों में भी शांतिधारा होती है, ऐसा कुछ ही समय पहले मैंने जाना है, सो कह रहा हूँ।

विशेष बातें विशेष विद्वज्जन करेंगें।
धन्यवाद।

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