ध्रुव और ध्रौव्य

ध्रुव और ध्रौव्य में क्या अंतर है?

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  1. ध्रुव अनादि अनंत एक समान ही है।
    ध्रौव्य प्रत्येक समय अलग अलग है।

  2. ध्रुव में द्रव्यता को मुख्य करके कथन किया जाता है।
    ध्रौव्य में पर्याय को मुख्य करके वर्णन किया जाता है।

  3. ध्रुव का आश्रय करने लायक है।
    ध्रौव्य में सम्यकदर्शन की पर्याय का भी आश्रय करने लायक नही है क्योंकि वह क्षण वर्ती है।

  4. परम शुद्ध निश्चयनय में मात्र ध्रुव का कथन है।
    बाकिके सातो नय का ध्रौव्य के आश्रय से कथन है।

  5. ध्रुव में अभेद रूप कथन पाया जाता है।ध्रौव्य में भेद रूप कथन ओआय जाता है।

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क्षम्यतां, आपके उपर्यक्त बिंदुओं के स्थान पर यह बिंदु कहना चाहूँगा।
अंतर मात्र इतना ही है-
ध्रुव- गुण
ध्रौव्य- ध्रुव का भाव (गुण का भाव - गुणत्व, गुणपना, गुनता, गौण)

•संस्कृत की दृष्टि से ध्रौव्य शब्द एक तद्धित शब्द है। जिसका प्रयोग भाव को बतलाने के लिए किया जाता है। जैसे:-
अकिंचन और आकिंचन्य
तत्वार्थ भाष्य में आकिंचन्य का अर्थ अकिंचन का भाव लिया है। इसीप्रकार यहाँ भी समझना चाहिए।

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I too agree with @Amanjain