डॉ. वीरसागर जी के लेख

गोष्ठी पर भी हो एक गोष्ठी
-प्रो वीरसागर जैन

मैं समझता हूँ कि हमें पहले गोष्ठी पर ही एक गोष्ठी करनी चाहिए | गोष्ठी किसे कहते हैं, क्यों की जाती है, कैसे की जाती है, इत्यादि सभी विषयों पर गम्भीरतापूर्वक विचार करना चाहिए, ताकि हम सही अर्थों में गोष्ठी/संगोष्ठी कर पाएँ और हमें उनका विशेष लाभ प्राप्त हो |

गोष्ठी/संगोष्ठी एक अलग ही विधा होती है | यह कोई शिविर आदि नहीं होता है | इसमें दुनिया को उपदेश नहीं दिया जाता है,अपितु इसमें तो कुछ विद्वान् स्वयं ही किसी विषय को अत्यंत निष्पक्ष/नि:शल्य होकर भलीभांति समझने का प्रयास करते हैं | गोष्ठी शब्द का अर्थ ही ऐसा है कि जहाँ गो अर्थात् विद्वान् एक साथ स्थित होकर किसी विषय की जुगाली करें, उसे गोष्ठी कहते हैं | गोष्ठी में एक विद्वान् अन्य विद्वान् मित्रों के समक्ष अपने मन की सभी शंका नि:संकोच रख देता है और उनके उचित समाधान की आशा करता है | इसमें किसी प्रकार का कहीं कोई आग्रह, भय, दबाव आदि किसी पर भी नहीं होता | यह तो एकदम वैज्ञानिक ढंग से सम्पन्न होने वाली ज्ञानप्राप्ति की उत्तम प्रक्रिया है |

इसी प्रकार की और भी अनेक महत्त्वपूर्ण बातें हैं, जिन्हें हम सबको भलीभांति समझना चाहिए | तभी हम इस उत्कृष्ट विधा का समीचीन लाभ प्राप्त कर पाएँगे, अन्यथा …

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