डॉ. वीरसागर जी के लेख

रामकथा के विशिष्ट प्रयोग :arrow_up:

-प्रो. वीरसागर जैन

रामकथा एक उच्च कोटि का काव्य है, अत: उसमें अनेक आलंकारिक या साहित्यिक प्रयोग हुए हैं; परन्तु जो लोग अलंकारादि रूप साहित्यशास्त्र को नहीं समझते हैं, वे भारी भ्रम में पड़ जाते हैं; अत: आइए रामायण के कतिपय विशिष्ट प्रयोगों को ठीक से समझने का संक्षिप्त प्रयास करते हैं | हमारा यह प्रयास सर्वथा काल्पनिक नहीं है, अपितु भाषाशास्त्र एवं अन्य अनेक रामायण-विषयक ग्रन्थों पर आधारित है | यथा-

1. रावण के दस सिर होना- रावण के वास्तव में ही दस सिर नहीं थे, अपितु वह बहुत अभिमानी था, अत: उसे दस सिर वाला कहा गया| अथवा वह बहुत बुद्धिमान था, अत: उसे दस सिर वाला कहा गया| अथवा उसके गले में दस मणियों एक ऐसा हार था जिसमें उसके दस मुख दिखाई देते थे, अत: उसे दस सिर वाला कहा गया |
2. रावण का राक्षस होना- रावण वास्तव में राक्षस नहीं था, मनुष्य ही था, किन्तु उसके वंश का नाम राक्षस था, अत: उसे संकेत में ‘राक्षस’ कहा जाता था |
3. हनुमान आदि का वानर होना- हनुमान आदि भी वास्तव में वानर (बन्दर) नहीं थे, मनुष्य ही थे, हनुमान तो सर्वांग सुन्दर थे, कामदेव थे, किन्तु उनके वंश का नाम वानर था, उनकी ध्वजाओं में वानर का चिह्न था, अत: लोग उन्हें संकेत में ‘वानर’ कहते थे |
4. हनुमान का हवा में उड़ना- हनुमान के पिता नाम पवन या पवनंजय था, अत: उनको पवनसुत या पवनकुमार कहा जाता था और इसी आधार पर उन्हें हवा में उड़ने वाला कहा जाता था | मारुतिनंदन का अर्थ भी पवनसुत या पवनकुमार ही है | उनका अंग (शरीर) वज्र के समान शक्तिशाली था, अत: उन्हें बजरंग बली भी कहते हैं |
5. पहाड़ उठाकर लाना- हनुमान सचमुच ही पहाड़ उठाकर नहीं लाये थे, अपितु समय की कमी और परिस्थिति की गम्भीरता को समझते हुए पहाड़ पर उपलब्ध सभी प्रकार की वनस्पतियों को भारी मात्रा में ले आये थे, अत: लोगों ने कहा कि हनुमानजी तो पूरा पहाड़ ही उठा लाये | उसीप्रकार, जिसप्रकार कि यदि हम कभी बहुत अधिक सब्जियां खरीदकर घर ले आते हैं तो पत्नी कहती है कि आज तो पूरी सब्जी मण्डी ही उठा लाये |
6. सूपनखा की नाक काटना- राम ने सचमुच सूपनखा की नाक नहीं काटी थी | राम तो भारतीय संस्कृति के उच्च प्रतिमान मर्यादा पुरुषोत्तम थे | वे किसी नारी की नाक कैसे काट सकते थे ? असल में हुआ यह था कि सूपनखा को अपने रूप-सौन्दर्य पर बहुत अधिक गर्व था और वह अपनी सहेलियों से यह वादा करके राम-लक्ष्मण के पास गई थी कि मैं उन्हें वशीभूत कर लूंगी, उसने नाना चेष्टाएँ करके कोशिश भी बहुत की, परन्तु सफल नहीं हो सकी | लौटकर आई तो उसकी सहेलियों ने कहा कि कटवा ली ने नाक |
7. पत्थर की शिला को स्त्री बना देना- राम ने सचमुच ही किसी पत्थर की शिला को पैर लगाकर स्त्री नहीं बनाया था, अपितु वे गौतम ऋषि के आश्रम पहुंचे थे, जहाँ उनकी पत्नी अहल्या अपने साथ हुई एक दुर्घटना को लेकर लम्बे समय से घोर अवसाद (depression) में पड़ी थी | पत्थर की शिला के समान ही हो गई थी | किसी भी प्रकार का कोई भी सुख-दुःख उसे किंचित् भी प्रभावित नहीं करता था | सब लोग बहुत प्रयास करके थक चुके थे | किन्तु राम ने उसे कुछ ऐसी कुशलता से समझाया कि वह अवसाद से बाहर आ गई, नोर्मल हो गई | इसी बात को लोगों ने कहा कि राम ने शिला को स्त्री बना दिया |
8. सीता की अग्निपरीक्षा होना- सीता सचमुच ही किसी अग्नि के कुंड में नहीं कूदी थी, न ही राम ने उसे ऐसा कुछ करने की आज्ञा दी थी, न ही उसे ऐसा करते हुए देखने के लिए वहाँ बड़े-बड़े ज्ञानियों की भीड़ जुटी थी | यह सम्भव ही नहीं है | यदि होता तो यह एक घोर अज्ञानतापूर्ण दुष्कृत्य होता | अत: यहाँ अग्निपरीक्षा का अर्थ कठिन परीक्षा ही है, जैसा की आज भी मुहावरे के रूप में प्रयोग होता है |
9. सीता का पृथ्वी में समा जाना- कहते हैं कि अग्निपरीक्षा में उत्तीर्ण होने के बाद सीता पृथ्वी में समा गई थी | परन्तु सीता कोई सचमुच में ही पृथ्वी में नहीं समा गई थी, अपितु उन्होंने एक पृथ्वीमति नाम की महान साध्वी के पास दीक्षा ग्रहण कर ली थी और स्वयं को पूरी तरह उनके पास धर्माराधना में ही समर्पित कर दिया था | अत: लोगों ने कहा कि सीता पृथ्वी में समा गई |

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