डॉ. वीरसागर जी के लेख

21. उत्तम विद्यार्थी के षट् आवश्यक :arrow_up:

अध्ययनं श्रवणं भक्त्या, स्मरणं पृच्छनं पुनः |
लेखनं पाठनञ्चापि, षट्कर्माणि दिने दिने ||

यह श्लोक मैंने स्वयं अपने प्रिय विद्यार्थियों के लिए लिखा है | इसका आशय संक्षेप में इस प्रकार है कि प्रत्येक विद्यार्थी को उच्च कोटि का विद्वान् बनने के लिए निम्नलिखित षट् आवश्यकों का नित्य पालन करना चाहिए – अध्ययन, श्रवण, स्मरण, पृच्छन, लेखन और पाठन |
प्रायः देखा जाता है कि कुछ विद्यार्थी सुनते तो बहुत हैं, पर हमेशा केवल सुनते ही सुनते रहते हैं बस, कभी मूल ग्रन्थों को उठाकर आद्योपांत पढ़ते नहीं हैं, जबकि पढ़ने से ही मूल विषयवस्तु सांगोपांग भलीभांति समझ में आती है | अत: उत्तम विद्यार्थी का प्रथम आवश्यक कर्म है कि वह नित्य कुछ क्रमबद्ध रीति से अध्ययन करे | शास्त्रों का निर्दोष वांचन करे | इससे विद्यार्थी में अनेक गुण विकसित होते हैं |
इसी प्रकार कुछ विद्यार्थी ऐसे होते हैं जो पढ़ते तो हैं, पर हमेशा पढ़ते ही पढ़ते रहते हैं, कभी किसी विद्वान् को सुनते नहीं हैं, जबकि ज्ञानी जनों को सुनने से बहुत गहरा ज्ञान प्राप्त होता है | अत: उत्तम विद्यार्थी का यह भी एक आवश्यक कर्म है कि वह नित्य गुरुजनों के व्याख्यान आदि का कुछ श्रवण भी अवश्य करे | इससे भी विद्यार्थी में अनेक गुण विकसित होते हैं |
कुछ विद्यार्थी पढ़ते भी हैं, सुनते भी हैं, पर कभी कुछ लक्षण, परिभाषा, गाथा, श्लोक आदि कुछ कंठस्थ नहीं करते हैं | यह बहुत बड़ी कमी है | इसके कारण वे विषयवस्तु की ठीक से परीक्षा, तुलना आदि नहीं कर पाते हैं | पिछला पाठ याद रहे तभी अगला ठीक से समझ में आता है | अत: स्मरण भी उत्तम विद्यार्थी का एक आवश्यक कर्म है |
कुछ विद्यार्थी पढ़ते भी हैं, सुनते भी हैं, कुछ-कुछ स्मरण भी करते हैं, पर कभी कुछ पूछते ही नहीं हैं | या तो वे बहुत संकोची होते हैं या विषय पर गहरा चिन्तन ही नहीं करते हैं | ऐसे ही शांत, उदास भाव से सब कुछ पढ़ते-सुनते रहते हैं, उन्हें कभी कोई जिज्ञासा ही उत्पन्न नहीं होती | परन्तु इससे उनके अंतर्मन की शल्य दूर नहीं होती | अत: संकोच छोडकर सक्रिय होकर बारम्बार अनेक प्रश्न पूछना चाहिए | इससे विषय स्पष्ट होता है|
कुछ विद्यार्थी पढ़ते भी हैं, सुनते भी हैं, स्मरण भी करते हैं, पूछते भी हैं, पर कभी कुछ लिखते नहीं हैं, इसलिए उन्हें अपने ज्ञान का कच्चापन पता नहीं चलता है | किसी भी विषय को जब हम स्वयं लिखने बैठते हैं, तब हमें पता चलता है कि हम कितने गहरे पानी में हैं | अत: प्रतिदिन थोड़ा बहुत लिखना भी अवश्य चाहिए | लिखने से हमारा ज्ञान सुव्यवस्थित होता है | अत: लेखन को भी उत्तम विद्यार्थी का एक आवश्यक कर्म ही समझना चाहिए |
कुछ विद्यार्थी पढ़ते भी हैं, सुनते भी हैं, स्मरण भी करते हैं, पूछते भी हैं, लिखते भी हैं, पर कभी कुछ दूसरों को पढ़ाते नहीं हैं, किन्तु मेरे खयाल से पढ़ाना भी उत्तम विद्यार्थी का एक आवश्यक कर्म है, क्योंकि पढ़ाने से विद्या बहुत वृद्धिंगत होती है | पढ़ाना पढ़ने का ही एक उत्तम प्रकार है- Teaching is the best way of learning.
इस प्रकार मेरा अनुभव है कि जो विद्यार्थी उक्त षट् आवश्यक कर्मों का सेवन करेगा वह निश्चय ही उच्च कोटि का विद्वान् बनेगा और भलीभांति स्व एवं पर दोनों का हित सम्पादन करेगा | ऐसा विद्यार्थी जगत् में मंगल स्वरूप होगा, परमपूज्य बनेगा | ऐसे विद्यार्थी को मेरा भी विनम्र प्रणाम हो |

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