डॉ. वीरसागर जी के लेख

20. सदानन्द नगर की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट :arrow_up:

मैं एक पत्रकार हूँ। मुझे एक अद्भुत समाचार मिला है कि इसी पृथ्वी पर कही अत्यंत दूर सदानंद नाम का एक ऐसा नगर है जो ‘यथा नाम तथा गुण’ है । वहां सदा सभी को सभी प्रकार का आनंद उपलब्ध रहता है। कभी किसी को कोई कष्ट नहीं होता । वहां कभी कोई रोग, महामारी, दुर्भिक्ष आदि तो दूर, सर्दी, गर्मी, वर्षा की हीनाधिकता के भी कोई कष्ट नहीं होते; सदा ही सुरम्य वातावरण बना रहता है । समाज में भी छुआछूत, दहेज़, चोरी, बलात्कार, बेरोजगारी आदि किसी भी तरह की कोई समस्या नहीं पाई जाती । परिवारों में भी कहीं कोई कलह नहीं होता, सब लोग सदा सबके अनुकूल ही रहते है । धन दौलत की दृष्टि से तो सर्व प्रकार की सम्पन्नता है ही ।
अतः मै कैसे भी बहुत कोशिश करके अपना माइक, कैमरा आदि लेकर इस नगर की एक एक्सक्लूसिव रिपोर्ट तैयार करने के लिए वहां पहुँच गया । वहां जाकर मैंने देखा कि वास्तव में ही वहां सर्व प्रकार का आनन्द है, कहीं किसी को कोई कष्ट नहीं है । मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ | मैंने ऐसा नगर आजतक देखना तो दूर, सुना भी नहीं था। मुझे यहां बहुत अच्छा लग रहा था।
किन्तु यह क्या, यहाँ के लोग तो मुझे जैसे शांत और प्रसन्न होने चाहिए थे, वैसे नहीं दिखाये दे रहे हैं, अपितु बहुत ही अशांत और परेशान-से दिखाए दे रहे हैं । वे सब न जाने किस समस्या में उलझे हुए भागदौड़ में ही लगे हुए थे, उन्हें मुझसे बात करने तक की फुर्सत नहीं थी।
पर मैं तो पत्रकार था, किसी तरह कुछ लोगों को बात करने को तैयार कर लिया। एक व्यक्ति से मैंने पूछा- ‘‘महाशय, आप क्या करते हैं ? जरा कुछ अपने बारे में बताइये न ! ‘’
वे मुझे अपने एक भव्य कार्यालय में ले गए और अनेक साथियों के साथ सभागार में एकत्रित हो गए । फिर एक जन बोले- ‘’ देखिये पत्रकारजी, हम सभी काक-वर्ण-निवारण-समिति के सदस्य हैं, मैं अध्यक्ष हूँ और मेरे साथ ये सभी उपाध्यक्ष आदि अन्य पदाधिकारी एवं सदस्यगण हैं, हम कुल मिलाकर 80 लोग हैं और हमने आज से 50 वर्ष पहले अपनी इस काक-वर्ण-निवारण-समिति का गठन किया था। हमारी समिति का उद्देश्य है - कौए का रंग परिवर्तन करना । हम सभी चाहते हैं कि कौए का रंग अत्यंत उज्ज्वल धवल सफ़ेद होना चाहिए, काला होना ठीक नहीं है। हम सभी सदस्य पिछले 50 वर्षो से अनेक अनेक प्रयोगों के द्वारा अपने उद्देश्य की प्राप्ति में जुटे हुए हैं । हमने लाखों लीटर दूध से एक-एक कौए को रात-दिन दूध में रख-रख कर धोया है, अच्छी क्वालिटी के सफ़ेद पेंट से भी पोता है, तथा इसी प्रकार के और भी अनेक प्रयोग किये हैं । इस कार्य में अब तक 8000 करोड़ रूपये का बजट खर्च हो चुका है जिसे अगले वित्तीय वर्ष से और भी बढ़ाया जा रहा है । यद्यपि हमको अभी तक कोई सफलता नहीं मिली है , परन्तु हमारे सभी साथी प्राण पण से जुटे हुए हैं , उन्हें अपने खाने-पीने, सोने तक की कोई चिंता नहीं है, वे रात-दिन निष्ठापूर्वक अथक परिश्रम कर रहे हैं । हमें आशा ही नहीं, पूर्ण विश्वास है कि हम एक दिन अपने उद्देश्य की प्राप्ति करने में अवश्य सफल होंगे ।’’
मैं इनकी बातें सुनकर स्तब्ध रह गया। सोचने लगा - ये कैसे लोग हैं, सदानंद नगर का सब सुख पास में होते हुए भी व्यर्थ ही इतने दुखी, अशांत, परेशान हो रहे हैं । मैंने उन्हें समझाना भी चाहा कि आप लोग क्यों व्यर्थ ही परेशान हो रहे हो, मस्त रहा करो, कौआ तो ऐसा ही होता है, होता था और होता रहेगा,यह उसका स्वभाव है ,इसे बदला नहीं जा सकता, आदि; पर वे मेरी कुछ भी सुनने तैयार नहीं थे, अतः मैं वहां से निकलकर एक दूसरे जनसमूह से बात करके स्थिति समझने की कोशिश करने लगा - ‘‘बंधुओ ! मैं पत्रकार हूँ और भारतवर्ष की राजधानी नई दिल्ली से आया हूँ, आप लोग किस भाग-दौड़ में लगे हैं , जरा कुछ अपने बारे में बताइये न!’’
उन्होंने बताया - ‘‘हम सभी नीम-रस-परिवर्तन-समिति के सदस्य हैं । हमारी संस्था बहुत पुरानी है, इसकी स्थापना आज से 99 वर्ष पहले हुई थी ।अगले वर्ष हम बड़े ही व्यापक स्तर पर इस संस्था का शताब्दी समारोह मनाने जा रहे हैं । हमारी संस्था का उद्देश्य है- नीम का रस परिवर्तन करना । नीम एक अत्यंत उपयोगी वृक्ष है, परन्तु कड़ुआ होने के कारण सभी लोग उसका लाभ नहीं उठा पाते हैं, अतः हमारी संस्था समस्त जनता के कल्याण के लिए उसे कड़ुए के स्थान पर मीठा बनाने के लिए कृत-संकल्प है और एतदर्थ अनेक योजनाएँ चला रही है । हमारी संस्था ने एक विशाल भूखंड पर नीम का बाग लगाया है और उसमें सैकड़ों वैज्ञानिकों को नियुक्त किया है । हम सब लोग खाना पीना सोना सब भूलकर, तन-मन-धन से इस कार्य में रात-दिन जुटे हुए हैं । हमने अनेक महान प्रयोग भी किये हैं । जैसे - हमने नीम को शुरू से ही पानी के बजाय चीनी से सींचने का प्रयोग भी किया है। यद्यपि अभी तक इस कार्य में हमें कोई सफलता नहीं मिली है, पर हमारे कार्यकर्त्ता हिम्मत हारने वाले नहीं है। हमने आम जनता के कल्याण का महान कार्य अपने हाथ में लिया है और उसे करके रहेंगे ।’’
‘‘अरे, ये तो यहाँ भी वैसा ही हाल है, ये लोग भी बड़े मूर्ख लग रहे हैं, व्यर्थ ही दुखी हो रहे हैं, इनको कौन कैसे समझा सकता है ?’’ - मैं सोचने लगा और आगे चल दिया।
आगे जाकर मैं एक अन्य दल से बात करने की कोशिश करने लगा - ‘‘मित्रो ! मैं पत्रकार हूँ, मुझे जरा अपने बारे में कुछ बताइए न !’’
वे बोले - ''हम सब सूर्य-दिशा-परिवर्तन-समिति के सम्मानित सदस्य हैं । हम सब निःस्वार्थ भाव से पूरे तन-मन-धन से रात-दिन जुटकर अपनी संस्था की सेवा करते हैं । हमारी संस्था एक बड़े ही महान उद्देश्य से स्थापित की गई है। इसका उद्देश्य है - सूर्योदय की दिशा परिवर्तन करना । दरअसल बात यह है कि सूर्य प्रतिदिन एक पूर्व ही दिशा से उदित होता है और यह बात न्यायोचित नहीं है। इससे अन्य दिशाओं का अनादर भी होता है और उन दिशाओं में रहने वालों को भी सूर्य का समुचित लाभ नहीं मिल पाता है । हम चाहते हैं कि सूर्य क्रम-क्रम से एक-एक हफ्ते के लिए सभी दिशाओं में उदित हुआ करे, ताकि सबका समान रूप से भला हो । हमारी संस्था ने अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए अब तक हजारों विमान बनाकर आकाश की ओर भी भेजे हैं, जिनमें हमारी धनहानि ही नहीं, जनहानि भी बहुत हुई है, परन्तु फिर भी हमारे एक भी कार्यकर्त्ता का उत्साह शिथिल नहीं हुआ है, सब लोग अपना सर्वस्व समर्पित करके भी, जान देकर भी इस उद्देश्य की प्राप्ति करने हेतु कृत-संकल्प हैं। हमें आशा ही नहीं, पूर्ण विश्वास है कि एक-न-एक दिन इस कार्य में सफलता अवश्य मिलेगी । ‘’
मेरे मुँह से निकल पड़ा- हे भगवान ! और जैसे-तैसे अपने को संभालकर मैं आगे बढा। कुछ देर बाद सोचा - एक और दल से बात करके देखा जाए - ‘‘मान्यवर, आप लोग करते हैं, जरा कुछ अपने विषय में बताइये न ?’’
पर उनकी कहानी भी ऐसी ही निकली - ‘‘हम सब लोह-जल-तारण-समिति के सदस्य हैं । हमने अपना पूरा जीवन 24 x 7 अपनी समिति के लिए समर्पित कर रखा है। हमारी समिति का पावन उद्देश्य है - लोहे को भी लकड़ी की तरह पानी में तिराना । हमारा सोचना है कि जब लकड़ी पानी में तैर सकती है तो लोहा क्यों नहीं ? उसे भी तैरना चाहिए । पक्षपात क्यों ? हम यह पक्षपात सहन नहीं करेंगे । और इसीलिए हमारी इस समिति की स्थापना हमारे पूर्वजों ने की है। हमारी समिति अत्यंत प्राचीन है और अब तक अनेक कीर्तिमान स्थापित कर चुकी है, बड़े-बड़े पुरस्कार प्राप्त कर चुकी है, वर्ल्ड रिकॉर्ड बना चुकी है । ये देखिये, ये जो ऊपर लगे हैं, ये सब हमारे पूर्व पदाधिकारियों के चित्र हैं ।
इन्होंने समिति के उद्देश्य की प्राप्ति के लिए अपने प्राणों तक को न्योछावर कर दिया था । भारत सरकार ने इन्हें मरणोपरांत स्वर्णपदक आदि प्रदान करके सम्मानित किया है । हमारे नए युवा कार्यकर्ता भी अपने पूर्वजों के पद-चिह्नों पर चलते हुए समिति के उद्देश्य को पूर्ण करने में जी जान से जुटे हुए हैं । उन्हें अपने तन-मन, घर-परिवार आदि की कोई
परवाह नही है। वे लोहे को पानी में तिराने के लिए गहरे पानी में भी कूदने का जोखिम उठा रहे हैं । यद्यपि इसमें हमारे अनेक कार्यकर्ता शहीद हो चुके हैं और हमें अपने उद्देश्य में भी अभी तक कोई ख़ास सफलता भी नहीं मिली है, लेकिन हम निराश नहीं हुए हैं | हम जब तक अपने उद्देश्य की प्राप्ति नहीं कर लेंगे, तब तक चैन की साँस नहीं लेंगे। इंकलाब ज़िंदाबाद !’’
मैं सोचने लगा- हे भगवान, इतनी बड़ी-बड़ी बातें और वे भी बिलकुल व्यर्थ ! सब सुख होते हुए भी महादुखी! दुःख का कारण हो और व्यक्ति दुखी हो तब तो कोई बात भी है, पर सर्व प्रकार का आनंद होते हुए भी, सदानंद नगर में रहते हुए भी जो इतना अशांत हो, उसका क्या किया जाये ? कदाचित् कोई समझाने वाला मिले तो भी जो न सुने-समझे, उसका क्या जाये ? उसे सुखी कौन करे?
और मैं भारी मन से दिल्ली लौट आया।

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