डॉ. वीरसागर जी के लेख

15. जैन विद्या की व्यापकता :arrow_up:

जैन लेखकों की कृतियाँ परिमाण, गुणवत्ता, विविधता आदि अनेक दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण सिद्ध होती हैं | यहाँ हम उन्हें विविधता की दृष्टि से देखने का लघु प्रयास करना चाहते हैं |
आश्चर्य होता है कि जैन लेखकों ने धर्म, दर्शन, अध्यात्म आदि कुछ गिने-चुने विषयों पर ही नहीं, अपितु भारतीय वाङ्गमय
के प्राय: प्रत्येक विषय पर अनेकानेक कृतियों की रचना की है |
इसी प्रकार साहित्य की लगभग हर विधा में ही उनकी कृतियाँ उपलब्ध होती हैं, चाहे वह गद्यात्मक हो या पद्यात्मक | इतना ही नहीं, जैन लेखकों ने अनेक नई विधाओं का उद्भव और विकास भी किया है |
यहाँ हम कतिपय महत्त्वपूर्ण विषयों एवं विधाओं पर जैन लेखकों की कृतियां नमूने के तौर पर संचित कर रहे हैं, ताकि जैन विद्या की व्यापकता का कुछ अनुमान हो सके |
[क] सर्वप्रथम विविध विषयों के अनुसार जैन कृतियां देखिये—

  1. अध्यात्म- समयसार, नियमसार, इष्टोपदेश, समाधितन्त्र, परमात्मप्रकाश,अध्यात्मतरंगिणी |
  2. धर्म- पद्मनंदी-पंचविशतिका, प्रतिष्ठा-प्रदीप, धर्मामृत, षट्कर्मोपदेश,ज्ञानपीठ-पूजांजलि |
  3. दर्शन- षट्खंडागम, तत्त्वार्थसूत्र, प्रवचनसार, पंचास्तिकाय, पंचाध्यायी, धवला |
  4. आचार- रत्नकरंडश्रावकाचार, पुरुषार्थसिद्ध्युपाय, मूलाचार, धर्मामृत |
  5. न्याय- परीक्षामुख, न्यायदीपिका, प्रमाणमीमांसा, प्रमेयकमलमार्तण्ड, प्रमेयरत्नमाला, अष्टसहस्री, न्यायविनिश्चय, स्याद्वादमंजरी, आप्तमीमांसा, आप्तपरीक्षा, तर्कभाषा, नयचक्र |
  6. साहित्य- गद्यचिंतामणि, गीतवीतराग, धर्मशर्माभ्युदय, जैनमेघदूत, भरतेश-वैभव, मदन-पराजय, अध्यात्मबारहखड़ी, दौलत-विलास |
  7. छन्द- स्वयम्भूच्छंद, छंदोनुशासन, प्राकृत-पैंगलं, छंदशतक, रत्नमंजूषा, वृत्तजातिसमुच्चय, छन्दःकोश, छन्दःकन्दली, कविदर्पण, छन्दःशास्त्र |
  8. अलंकार- वाग्भटालंकार, अलंकारदर्पण, काव्यानुशासन, शृंगारमंजरी, कल्पलता, कविशिक्षा, अलंकारप्रबोध,अलंकारमहोदधि,अलंकारमंडन, अलंकारचिंतामणि, शृंगारार्णवचन्द्रिका |
  9. व्याकरण- कातन्त्र, जैनेन्द्र, शब्दानुशासन, शब्दाम्भोजभास्कर, शाकटायनन्यास, शब्दार्णव,धातुमंजरी.धातुरत्नाकर,उपसर्गमंडन, |
  10. आयुर्वेद- कल्याणकारक, अष्टांगसंग्रह,सिद्धांतरसायनकल्प, पुष्पायुर्वेद, वैद्यवल्लभ, रसचिंतामणि, ज्वरपराजय, आयुर्वेदमहोदधि, निदानमुक्तावली, नाड़ीपरीक्षा,वैद्यामृत, बालगृहचिकित्सा |
  11. गणित- गणितसारसंग्रह, गोम्मट्टसार, लब्धिसार, क्षपणासार, बीजगणित, व्यवहारगणित, गणितसूत्र, गणितसंग्रह, सिद्ध-भू-पद्धति, षटत्रिंशिका, अर्थसंदृष्टि |
  12. ज्योतिष- भद्रबाहुसंहिता, भारतीय ज्योतिष, जातक-तिलक, विवाहपडल, कालसंहिता, प्रश्नपद्धति, प्रश्नशतक, ज्योतिष्प्रकाश, ज्योतिषरत्नाकर |
  13. वास्तु – वत्थुसारपगरण, लोयालोयविभाग, प्रतिष्ठासारोद्धार, वत्थुविज्जा |
  14. सामुद्रिक- सामुद्रिकशास्त्र, सामुद्रिकलक्षण, हस्तसंजीवन, करलक्खण, अंगविज्जा, अंगविद्याशास्त्र|
  15. रमल- रमलशास्त्र, रमलविद्या, पाशाकेवली,अर्हत्पाशाकेवली |
  16. भूगोल- त्रिलोकसार, तिलोयपणणत्ति |
  17. खगोल- सूर्यप्रज्ञप्ति, चन्द्रप्रज्ञप्ति |
  18. पुराण- महापुराण, पद्मपुराण, हरिवंशपुराण,पांडवपुराण, पार्श्वपुराण |
  19. चरित- श्रीपालचरित, जीवन्धरस्वामिचरित,चन्द्रप्रभचरित, श्रेणिकचरित, यशोधरचरित |
  20. कथा- धर्मपरीक्षा, समराइच्चकहा, वसुदेवहिंडी, कुवलयमाला, पुण्यास्रव-कथाकोश, गद्यकथाकोश, व्रतकथाकोश, आराधना-कथाकोश, सम्यक्त्वकौमुदी |
  21. आत्मकथा- अर्धकथानक, मेरी जीवनगाथा |
  22. कला – चित्रवर्णसंग्रह, कलाकलाप, मषीचार|
  23. शिल्प- वास्तुसार, शिल्पशास्त्र |
  24. कोश- विश्वलोचनकोश, जैनेन्द्र सिद्धांत कोश, अभिधान राजेन्द्र कोश, नाममाला, पाइयसद्दमहणणव, पाइलच्छीनाममाला, विश्वलोचनकोश, एकाक्षरकोश |
  25. भक्ति-स्तुति- स्तुतिविद्या, दशभक्ति, स्वयम्भूस्तोत्र, भक्तामरस्तोत्र, कल्याणमन्दिरस्तोत्र, महावीराष्टकस्तोत्र, सिद्धचक्रविधान, इंद्रध्वजविधान, उवसग्गहरंत्थोत्त |
  26. अर्थशास्त्र- कार्तिकेयानुप्रेक्षा, अहिंसक अर्थशास्त्र, महावीर का अर्थशास्त्र, तीर्थंकर महावीर की अर्थनीति [डॉ.निर्मल जैन,मेघ प्रकाशन, नई दिल्ली ] |
  27. समाजशास्त्र- यशस्तिलकचम्पू, पुरुदेवचम्पू, महापुराण |
  28. राजनीतिशास्त्र- क्षत्रचूड़ामणि, नीतिवाक्यामृत |
  29. निमित्तशास्त्र- जोणीपाहुड, रिट्ठसमुच्चय, निमित्तपाहुड, जयपाहुड, सिद्धादेश,पणहवागरण|
  30. विधिशास्त्र [law]- इंद्रनंदी-संहिता, अर्हन्नीति, the jain law,
  31. नीतिशास्त्र- सुभाषितरत्नसंदोह, नीतिवाक्यामृत, सूक्तिमुक्तावली, जिनसंहिता |
  32. योगशास्त्र- योगसार, ज्ञानार्णव, ध्यानशतक, तत्त्वानुशासन, योगसारसंग्रह |
  33. लक्षणशास्त्र- जैनलक्षणावली, लक्षणमाला, लक्षणसंग्रह, लक्ष्यलक्षणविचार, लक्षणपंक्तिकथा|
  34. संगीतशास्त्र- संगीत-समयसार, संगीतशती, संगीतरत्नावली, संगीतोपनिषद, संगीतदीपक, संगीतमंडन, संगीतसहपिंगल |
  35. स्वप्नशास्त्र- सामुद्रिकतिलक, अंगविज्जा, भद्रबाहुचरित, सुविणदार, स्वप्नशास्त्र, स्वप्नप्रदीप |
  36. शकुनशास्त्र- शकुनसारोद्धार, शकुनरहस्य, शकुनरत्नावली, शकुनावलि, शकुनविचार |
  37. नाट्यशास्त्र- नाट्यदर्पण, नाट्यदर्पणविवृत्ति, प्रबंधशत, |
  38. काव्यशास्त्र- नवरस पद्यावली,काव्यानुशासन काव्यालोचन, काव्यालंकार टीका |
  39. मंत्रविज्ञान- मन्त्रमहोदधि, मंत्रानुशासन, लघुविद्यानुवाद, मन्त्रव्याकरण, सरस्वतीकल्प |
  40. धातुविज्ञान- धातुवादप्रकरण, भूगर्भप्रकाश, धातूत्पत्ति |
  41. रत्नविज्ञान- रत्नपरीक्षा, हीरकपरीक्षा, मणिकल्प |
  42. भौतिकविज्ञान- द्रव्यसंग्रह, पंचास्तिकाय |
  43. मनोविज्ञान – कषायपाहुड, धवला, जयधवला, चित्त और मन |
  44. प्राणिविज्ञान- तुरंगप्रबंध, हस्तिपरीक्षा, मृगपक्षिशास्त्र |
  45. मृत्युविज्ञान- मरणकंडिका, भगवती-आराधना, मृत्युमहोत्सववचनिका |

[ख] अब साहित्य की विविध विधाओं की दृष्टि से जैन कृतियों का अवलोकन कीजिये-–

  • महाकाव्य - पद्मानंद, धर्मशर्माभ्युदय, ऋषभायण, शिलप्पदिकारम्, मणिमेखला, कुंडलकेशी, रायमल्लाभ्युदय |
  • खण्डकाव्य- पार्श्वाभ्युदय, पश्चात्ताप |
  • मुक्तककाव्य - वज्जालग्ग, बुधजन-सतसई, जैन शतक |
  • चरितकाव्य – वर्धमानचरित, प्रद्युम्नचरित, चन्द्रप्रभचरित, श्रेणिकचरित, सनत्कुमारचरित, कुमारपालचरित, वस्तुपालचरित |
  • पुराण - महापुराण, पद्मपुराण, हरिवंशपुराण, शांतिनाथपुराण, अजितनाथपुराण, पांडवपुराण |
  • रासोकाव्य - आदिनाथरास, भरतेश्वर-बाहुबली-रास, ब्रह्मगुलालरास, हनुमंत-रास, होली-रास|
  • फागकाव्य –आदीश्वर फाग, चैतन्य फाग, वीरविलास फाग |
  • धूलिकाव्य - ऋषभनाथ की धूलि |
  • सन्धानकाव्य - द्विसन्धानकाव्य, सप्तसन्धानकाव्य, चतुर्विंशतिसन्धानकाव्य |
  • दूतकाव्य - नेमिदूत, जैनमेघदूत, शीलदूत, पवनदूत |
  • सूक्तिकाव्य - सूक्तिमुक्तावली, सुभाषितरत्नसंदोह |
  • नीतिकाव्य - बुधजन सतसई, उपदेश शतक |
  • ललितकाव्य - नेमिनिर्वाण, जयंतविजय, नरनारायणानन्द,चतुर बनजारा |
  • गीतिकाव्य - चौरपंचाशिका, गीतवीतराग, क्षेत्रपाल-गीत, गीत-परमार्थी,जीवड़ा गीत,णमोकार गीत, अष्टाह्निका गीत |
  • गद्यकाव्य- तिलकमंजरी, गद्यचिंतामणि, कुवलयमाला |
  • चम्पूकाव्य - पुरुदेवचम्पू जीवन्धरचम्पू, चम्पूमण्डन |
  • रूपककाव्य - मोहराजपराजय, मदनपराजय, मोहविवेकयुद्ध, ज्ञानचन्द्रोदय, विवेक-विलास, परमहंस|
  • नाट्यकाव्य - ज्ञानसूर्योदय, समयसार नाटक |
  • संवादकाव्य- जिह्वा-दन्त-संवाद, चेतन-काया-संवाद, निमित्त-उपादान-संवाद, पंचेन्द्रिय-संवाद |
  • चौपाईकाव्य- मधुबिंदुक चौपाई, धर्मसार चौपाई |
  • अष्टककाव्य - अकलंकाष्टक, पार्श्वनाथाष्टक, महावीराष्टक, सांत्वनाष्टक, दृष्टाष्टक |
  • दशककाव्य – दर्शन-दशक,
  • चतुर्दशीकाव्य –आश्चर्य-चतुर्दशी |
  • पच्चीसीकाव्य - अध्यात्म-पच्चीसी, वैराग्य-पच्चीसी, व्यवहार-पच्चीसी, नवकार-पचीसी, पद्मनंदी पच्चीसी |
  • बत्तीसीकाव्य- कमल-बत्तीसी, अनादि-बत्तीसी, अक्षर-बत्तीसी, आत्म-बत्तीसी, भावना-बत्तीसी, स्वप्न-बत्तीसी |
  • पंचाशिकाकाव्य – संबोधन-पंचाशिका, पूर्ण-पंचाशिका |
  • बावनीकाव्य –अक्षरबावनी, दानबावनी |
  • शतककाव्य- जैनशतक, उपदेशशतक, भुजबलिशतक, अपराजितशतक, छंदशतक |
  • वेलि – जम्बूस्वामि-वेलि, बाहुबली-वेलि, गुणस्थान-वेलि |
  • चूनडी – चूनड़ी (भगवतीदास) |
  • सतसई – बुधजन सतसई
  • बारहखड़ी – बारहक्खर-कक्क, अध्यात्मबारहखड़ी |
  • बारहमासा – नेमिनाथ-बारहमासा, बारहमासा, बारहमासी-गीत |
  • विलासकाव्य - बनारसी-विलास, दौलत-विलास, द्यानत-विलास, वृन्दावन-विलास, भूधर-विलास, ब्रह्म-विलास, विवेक-विलास |
  • भक्तिकाव्य- दशभक्ति, चैत्यभक्ति, सिद्धभक्ति, आचार्यभक्ति, श्रुतभक्ति |
  • स्तुतिकाव्य- स्तुतिविद्या, देवस्तुति,आदिनाथ स्तुति |
  • स्तोत्रकाव्य – भक्तामरस्तोत्र, कल्याणमंदिरस्तोत्र, विषापहारस्तोत्र |
  • पूजाकाव्य – देवशास्त्रगुरु पूजा, आदिनाथ-पूजा, महावीर-पूजा |
  • विधानकाव्य - सिद्धचक्र-विधान, इंद्रध्वज-विधान, शांतिनाथ-विधान, पञ्चपरमेष्ठी-विधान |
  • आरतीकाव्य- पंचपरमेष्ठी आरती, पार्श्वनाथ-आरती, वर्धमान आरती, आरती संग्रह |
  • चालीसाकाव्य - चन्द्रप्रभ-चालीसा, पार्श्वनाथ-चालीसा, महावीर-चालीसा |
  • जयमालाकाव्य - श्रुत-जयमाला, गुरु-जयमाला, तीर्थ-जयमाला, दशलक्षण-जयमाला, षोडशकारण- जयमाला, बीस तीर्थंकर जयमाला, चौरासी जाति जयमाला |
  • प्रश्नोत्तरी – प्रश्नोत्तररत्नमालिका योगसार-प्रश्नोत्तरी, परमात्मप्रकाश-प्रश्नोत्तरी |
  • सूत्र - तत्त्वार्थसूत्र, परीक्षामुखसूत्र, ध्यानसूत्र, षटखंडागमसूत्र |
  • वृत्ति- सर्वार्थसिद्धि, देवागमवृत्ति, तत्त्वार्थवृत्ति, प्राकृतपञ्चसंग्रहवृत्ति, सिद्धिविनिश्चयवृत्ति, परमार्थप्रकाशवृत्ति, लघीयस्त्रय-वृत्ति |
  • वार्तिक - राजवार्तिक|
  • टीका – आत्मख्याति, तत्त्वप्रदीपिका, तात्पर्यवृत्ति |
  • टब्बाटीका - वसुनंदी-श्रावकाचार-टब्बाटीका, तत्त्वार्थसूत्र-टब्बाटीका, समयसारटब्बाटीका, कार्तिकेयानुप्रेक्षा-टब्बाटीका |
  • भाष्य - श्लोकवार्तिकभाष्य, प्रमाणसंग्रहभाष्य |
  • महाभाष्य- गंधहस्ति-महाभाष्य,
  • टिप्पण – महापुराण-टिप्पण, न्यायदीपिका-टिप्पण, धर्मचरित-टिप्पण |
  • चूर्णी – कषायपाहुडचूर्णी |
  • भाषावचनिका - रत्नकरंड-भाषावचनिका, समयसार-भाषावचनिका, परीक्षामुख-भाषावचनिका |
  • कथा- सुगंधदशमीकथा, भविष्यदत्तकथा, अनंतचतुर्दशीकथा |
  • कहानी –अहिंसा के पथ पर, आप कुछ भी कहो, जैनधर्म की कहानियाँ |
  • चित्रकथा- अनंगधरा, षटखंडागम, कहान कथा : महान कथा, ताली एक हाथ से बजती रही, आटे का मुर्गा |
  • आत्मकथा - अर्धकथानक, मेरी जीवनगाथा |
  • जीवनी - चारित्रचक्रवर्ती, ज्ञान का हिमालय, सुधा का सागर, विद्याधर से विद्यासागर |
  • उपन्यास - मुक्तिदूत, सत्य की खोज |
  • नाटक- सुभद्रा, विक्रांतगौरव, ज्योतिष्प्रभा, अंजनापवनंजय |
  • एकांकी - धर्माभ्युदय, शमामृत |
  • शोधप्रबंध - जैनदर्शने बंधमुक्तिविमर्श:, पंडित टोडरमल : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व |
  • गुर्वावली - गुर्वावली, जैन-शिलालेख-संग्रह, प्रबंधावली, प्रबंध-चिंतामणी |
  • पट्टावली- पुरातन-प्रबंध-संग्रह, सेन पट्टावली, वृद्धाचार्य प्रबंधावली |
  • प्रशस्ति- वस्तुपाल-प्रशस्ति, मूलाचार-प्रशस्ति, सुकृतकीर्तिकल्लोलिनी |
  • पत्र – रहस्यपूर्ण चिट्ठी,उपादान-निमित्त की चिट्ठी, आध्यात्मिक पत्रावली, स्वानुभव-पत्रावली |
  • कोश – प्रबंधकोश, जैनेन्द्र-सिद्धांत-कोश, अभिधान-राजेन्द्र-कोश |

विचारणीयम्

• ‘‘यदि आपको भारतीय साहित्य व संस्कृति की सच्ची झलक देखनी है तो जलपान के लिए लोटा डोर और खाने के लिए सत्तू साथ में बांध लो और प्रत्येक जैन मंदिर और वहाँ के शास्त्र भंडारों को छान डालो |वहाँ आपको भारतीय संस्कृति के सच्चे रत्न मिलेंगे |’’ -महापंडित राहुल सांकृत्यायन

• ‘‘सृष्टि की रचना पता नहीं किसने की, पर साहित्य की सृष्टि तो जैन लेखकों ने ही की है |’’
-महापंडित राहुल सांकृत्यायन
• “ साहित्यसेवा के क्षेत्र में जैनाचार्यों की नीति निष्पक्ष तथा धार्मिक उदारता से प्रेरित थी | उन्होंने अनेक कृतियाँ इन भावनाओं से प्रेरित होकर भी लिखी पड़ीं और उनका संरक्षण किया है | ”
– डॉ. गुलाबचंद्र चौधरी
• ‘‘भारतीय भाषाओँ के इतिहास की दृष्टि से भी जैन साहित्य बहुत महत्त्वपूर्ण है |’’
-डा. विंटरनिटज, A HISTORY OF INDIAN LITERATURE
• ‘‘राजस्थान के जैन ग्रन्थागार सरस्वती के पीहर हैं |’’ -डॉ. कस्तूरचंद कासलीवाल

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