ऊपर ऊपर के गुणस्थानों में पुण्य बन्ध का मुल कारण क्या?

मेरे कुछ प्रश्न है यहाँ पर…
१. आप निर्जरा से क्या ग्रहण कर रहे है…?

२. यदि संक्रमण ऐसा ग्रहण किया तो प. जी. कह ही रहे है की वो शुभ और शुद्ध दोनों से संभव है तब आप शुद्ध से निर्जरा किस रूप मे नहीं मान रहे है…??


पेज २३२

जितना मुझे समझ आया उस अनुसार -
मोक्ष मार्ग प्रकाशक के २३२ पेज से जो बात ली है वह तो यह है की-
१. मोक्षमार्गी जीव के नवीन बंध मे स्थिति सभी की कम होती है - पुण्य पाप घाति अघाति

२. पुण्य प्रकृति के बंध मे अनुभाग का घटना शुद्धोपयोग से नहीं होता क्यूंकि अभी मंद कषय विद्धमान है जो उसके अनुभाग को बढाने मे कारण है - यहाँ अभी निर्जरा की बात नहीं की है

३. ऊपर ऊपर पुण्य प्रकृति के अनुभाग का बंध और उदय दोनों मे ज्यादा ही होता है - इसमें भी अभी निर्जरा की बात नहीं की है

४. पाप के परमाणु पलटकर शुभ प्रकृति रूप होते है , ऐसा संक्रमण शुभ तथा शुद्ध दोनों भाव होने पर होता है

५. इसीलिए पूर्वोक्त नियम संभव नहीं है - शुद्ध भाव से दोनों की निर्जरा होती है ऐसा नियम इसीलिए नहीं क्यूंकि शुद्ध भाव होने पर भी पुण्य प्रकृति का अनुभाग कम नहीं होता और पाप की भी निर्जरा न होकर संक्रमण हो रहा है (ये सारी बात शुद्ध भाव या शुद्धोपयोग से लगाना)

६. विशुद्धता ही के अनुसार नियम संभव है - यहाँ जो ऊपर वाले पैराग्राफ मे बात कही की 'शुद्धता होने पर शुद्धोपयोग रूप परिणति होती है , वहां तो निर्जरा ही है , बंध नहीं होता; अल्प शुद्धता होने पर शुभोपयोग का भी अंश रहता है ; इसीलिए जितनी शुद्धता हुई उससे तो निर्जरा है और जितना शुभ भाव है उससे बंध है I ऐसा मिश्र भाव युगपत होता है , वहां बंध और निर्जरा दोनों होते है ’ -वही सिद्धांत/नियम बताना हो सकता है I (यहाँ विशुद्धता का अर्थ शुद्ध परिणति ले सकते है और वह ही निर्जरा का कारण है; यहा निर्जरा का अर्थ सभी कर्मो के सम्बन्ध मे स्थिति का कम होना और पाप कर्म मे के सम्बन्ध मे अनुभाग का कम होना भी और साथ ही पाप का पुण्य मे संक्रमण होने को भी ले सकते है )

विशुद्धता का अर्थ अंतिम २ लाइन से समझ सकते है


पेज २३२

मूल प्रश्न ‘ऊपर ऊपर के गुणस्थान मे पुण्य बंध का मूल कारण’ का उत्तर -
शुभ भाव रूप मंद कषाय जो १० वे गुणस्थान तक पायी जाती है वह ही अनुभाग मे बड़ते हुए और स्थिति में घटते हुए पुण्य बंध का कारण है , शुद्ध भाव और शुद्ध परिणति पुण्य बंध का कारण नहीं होते I

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