कर्म - फल_________________

कार्य - कारण

इज्जतदार होना - जो तीर्थंकर, चक्रवर्ती आदि महान पुरुषों के गुणों की अपने मुख से कीर्ति करता हो, दूसरों के दोष को छुपाता हो, देव-गुरु-धर्म की प्रभावना करता हो, माता-पिता व गुरुओं की सेवा करता हो।

सज्जन होना - जो देवगति से आया हो, शुभसंगति पायी हो, सज्जन पुरुष को देख हर्ष होता हो।

बलवान होना - दीन अशक्त की दया की हो, निर्बल को भोजन कराया हो, नग्न को वस्त्र दिए हो।

शूरवीर होना - दीन को दुष्ट से बचाया हो, त्रस स्थावर जीवों की रक्षा की हो, भयवीत का भय दूर किया हो, निर्भय को देख प्रसन्न हुआ हो।

समताभावी होना - मुनि की शांत मुद्रा देख हर्ष हुआ हो, दूसरे निंदा करें तो समता रखी हो, दूसरा क्रूर हो फिर भी आप उसकी सहायता की हो, तरह-तरह के लोग देख संसार से उदास हुआ हो, तन-मन-धन आदि को राग-द्वेष से दुःख देने वाला जानकार मंद कषाय सहित हुआ हो।

धर्मात्मा होना - समताभाव रखा हो, दया की हो, धर्म उत्सव देख हर्ष हुआ हो, जिस जाती के धर्म की प्रशंसा की हो उस जाती के धर्म का लाभ होता है ।(तप, पूजा, त्याग, तीर्थयात्रा, प्रवचन जिसकी प्रशंसा की आप की हो।)

धनवान होना - गरीबों की सहायता करना, उन्हें धन देना, उनका धनवान होना चाहना, अन्य धनवान हुए ऐसा सुनकर खुश होना।

पुत्र सहित होना - दूसरों को पुत्र हुआ सुनकर खुश होना, जिसे पुत्र नहीं हुआ हो उसका पुत्र हो जाये ऐसी भावना भाना।

सपूत होना - दूसरों के कुमार्गी पुत्र को शिक्षा देकर सुमार्ग में संबद्ध करें। सुबुद्धि उपजाए, माता-पिता की आज्ञा में रखें। किसी के सुपुत्र को देख उसकी प्रशंसा करें, माता पिता के प्रति विनयवान रहें।

सती स्त्री होना - दूसरों के शीलवती, पति के विनयवान स्त्री देख आप खुश हों, दूसरो की स्त्री के शील की रक्षा की हो, प्रशंसा की हो।

सुखी परिवार होना - दूसरों के घर की लड़ाई छुड़ाकर उनमें स्नेह कराया हो, आप स्वयं कष्ट झेलकर, अपना धन देकर भी दूसरों के परिवार की सहायता की हो।

स्वस्थ शरीर होना - प्रासुक औषधि का दान दिया हो, रोगियों को देख उनसे ग्लानि नहीं की हो, उनकी सेवा की हो।

उदार चित्त होना - किसी के दान की प्रशंसा की हो, दान देने की इच्छा की हो, धर्म के लिए दान दिया हो।

(Extracted from the book “प्रश्नमाला” compiled by Sandhya Ben Ji, Shikohabad based on 40,000 questions which Gandhar maharaj asked to thirthankar)

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