आ. कुन्दकुन्द देव का विदेह गमन

आ. कुन्दकुन्द देव का विदेह गमन तर्क एवं युक्ति के आधार पर सही सिद्ध होता है या नहीं?

@jinesh @aman_jain @Amanjain @Sulabh

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If we can get in touch with Pt Sudeep ji delhi… I think he studied on this topic.

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शोध का विषय है, जिन विद्वानों ने इसके संदर्भ में कुछ शोध किया हो तो उनका मंतव्य भी प्रस्तुत करें । आपके पास भी यदि इस संदर्भ में कुछ प्राप्त हुआ हो तो उसे प्रेषित करें । इस विषय में मेरी कोई गति नहीं । हां, यदि कुछ मिलता है, तो चर्चा अवश्य करेंगे ।

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आचार्य कुंदकुंद देव के विदेह गमन के संबंध में मैं निर्णायक कथन तो नहीं कर सकता परंतु मेरी जानकारी में जो कुछ है, वह बता सकता हूं।
तत्वार्थ राज वार्तिक दूसरा अध्याय, सूत्र 49, वार्तिक 3 की वृत्ति के अनुसार मुनिराज आहारक शरीर का प्रयोग विदेह में केवली के समीप जाने के लिए करते हैं, क्योंकि औेदारिक शरीर से जाने में महान असंयम होता है।
यह स्पष्ट कथन है।
यहां विचारणीय है कि औेदारिक शरीर की बात अलग से क्यों लिखी गई। दादाजी का कहना है, कि अकलंक आचार्य को आचार्य कुंदकुंद देव संबंधी बात ज्ञान में थी, इसलिए यह अलग से लिखा।
तथा इस संबंध में पद्म चंद्र शास्त्री का एक लेख भी प्रेषित कर रहा हूं। वह भी विचारणीय है।
मेरे मन में इस संबंध में कोई निर्णय नहीं है। शेष जैसे प्रमाण मिलें…

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मेरा इस सन्दर्भ में ऐसा मानना है कि हम जो प्रश्न चिन्ह आचार्य कुन्द-कुन्द के सन्दर्भ में प्रस्तुत करते वो
आ.पूज्ययपाद के सन्दर्भ में भी होना चाहिए क्योकि वो भी विदेह क्षेत्र गये थे।

In below clip muni shree says that if acharya had gone to Videh kshetra and took gyan from Simandhar swamy, he should have mentioned name of Simandhar swamy in mangalacharan. But he just gave salute to all tirthankar of videh kshetra and not specifically Simandhar swamy. He further adds that acharya did not go videh according to his understanding.

https://drive.google.com/file/d/18HzWFM3xv-bXGpLMP9YKfCTv88auhzwB/view?usp=drivesdk

विदेहक्षेत्र गमन

गृद्धपृच्‍छ–(मू.आ./प्र.१०) जिनदास पार्श्‍वनाथ फुडकले) गृद्धपृच्‍छ नाम का हेतु ऐसा है कि विदेह क्षेत्र से लौटते समय रास्‍ते में इनकी मयूर पृच्छिका गिर गयी। तब यह गीध के पिच्‍छ (पंख) हाथ में लेकर लौट आये। अत: गृद्धपिच्‍छ ऐसा भी इनका नाम हुआ। श्रवणबेलगोला से प्राप्त अनेकों शिलालेखों में यह नाम उमास्‍वामी के लिए आया है और उन्‍हें कुन्‍दकुन्‍द के अन्‍वय का बतलाया गया है। इनके शिष्‍य का नाम भी बलाकपिच्‍छ है। इस पर से पं. कैलाश चन्‍द्रजी के अनुसार यह उमास्‍वामी का नामान्‍तर है न कि कुन्‍दकुन्‍द का। (जै॰सा॰/२/१०२)

  1. द.सा./मू./४३ जह पउमणंदिणाहो सीमंधरसामिदिव्‍वणाणेण। ण विवोहेइ तो समणा कहं सुमग्‍गं पयाणंति।४३।= विदेहक्षेत्रस्‍थ श्री सीमन्‍धर स्‍वामी के समवशरण में जाकर श्री पद्मनन्दि नाथ ने जो दिव्‍य ज्ञान प्राप्त किया था, उसके द्वारा यदि वह बोध न देते तो, मुनिजन सच्‍चे मार्ग को कैसे जानते।

  2. पं.का./ता.वृ./मंगलाचरण/१ अथ श्रीकुमारनन्दिसिद्धान्‍तदेवशिष्‍यै: प्रसिद्धकथान्‍यायेन पूर्वविदेहं गत्‍वा वीतरागसर्वज्ञश्रीमंदरस्‍वामितीर्थकरपरमदेवं दृ‍ष्ट्वा। तन्‍मुखकमलविनिर्गतदिव्‍यवाणीश्रवणावधारितपदार्थाच्छुद्धात्‍मतत्त्वादिसारार्थं गृ‍हीत्‍वा पुनरप्‍यागतै: श्रीकुण्‍डकुन्‍दाचार्यदेवै: पद्मनन्‍द्याद्यपराभिधेयै …विरचिते पञ्चास्तिकायप्राभृतशास्‍त्रे… तात्‍पर्यव्‍याख्‍यानं कथ्‍यते।=अब श्री कुमारनन्दि सिद्धान्‍तदेव के शिष्‍य, जो कि प्रसिद्ध कथा के अनुसार पूर्व विदेह में जाकर वीतरागसर्वज्ञ तीर्थंकर परमदेव श्रीमन्‍दर स्‍वामी के दर्शन करके, उनके मुखकमल से विनिर्गत दिव्‍य वाणी के श्रवण द्वारा अवधारित पदार्थ से शुद्धात्‍म तत्त्व के सार को ग्रहण करके आये थे, तथा पद्मनन्दि आदि हैं दूसरे नाम भी जिनके ऐसे कुन्‍दकुन्‍द आचार्यदेव द्वारा विरचित पंचास्तिकाय प्रा‍भृतशास्‍त्र का तात्‍पर्य व्‍याख्‍यान करते हैं।

  3. ष.प्रा./मो./प्रशस्ति/पृ.३७९ श्री पद्मनन्दिकुन्‍दकुन्‍दाचार्य …नामपञ्चकविराजितेन चतुरङ्गुलाकाशगमनर्द्धिना पूर्वविदेहपुण्‍डरीकणीनगरवंदित सीमन्‍धरापरनामस्‍वयंप्रभजिनेन तच्‍छ्रुतज्ञानसंबोधितभरतवर्षभव्‍यजीवेन श्रीजिनचन्‍द्रभट्टारकपट्टाभरणभूतेन कलिकालसर्वज्ञेन विरचिते षट्प्राभृतग्रन्‍थे …।=श्री पद्मनन्दि कुन्‍दकुन्‍दाचार्य देव जिनके कि पाँच नाम थे, चारण ऋद्धि द्वारा पृथिवी से चार अंगुल आकाश में गमन करते पूर्व विदेह की पुण्‍डरीकणी नगर में गये थे। तहाँ सीमन्‍धर भगवान् जिनका कि अपर नाम स्‍वयंप्रभ भी है, उनकी वन्‍दना करके आये थे। वहाँ से आकर उन्‍होंने भारतवर्ष के भव्‍य जीवों को सम्‍बोधित किया था। वे श्री जिनचन्‍द्र भट्टारक के पट्ट पर आसीन हुए थे, तथा कलिकाल सर्वज्ञ के रूप में प्रसिद्ध थे। उनके द्वारा विरचित षट्प्राभृत ग्रन्‍थ में।

मू.आ./प्र.१० जिनदास पार्श्‍वनाथ फुडकले−भद्रबाहु चरित्र के अनुसार राजा चन्‍द्रगुप्त के सोलह स्‍वप्नों का फल कथन करते हुए भद्रबाहु आचार्य कहते हैं कि पंचम काल में चारणऋद्धि आदिक ऋद्धियाँ प्राप्त नहीं होतीं, और इसलिए भगवान् कुन्‍दकुन्‍द की चारण ऋद्धि होने के सम्‍बंध में शंका उत्‍पन्‍न हो सकती है। जिस का समाधान यों समझना कि चारण ऋद्धि के निषेध का वह सामान्‍य कथन है। पंचम काल में ऋद्धिप्राप्ति अत्‍यन्‍त दुर्लभ है यही उसका अर्थ समझना चाहिए। पंचम काल के प्रारम्‍भ में ऋद्धि का अभाव नहीं है परन्‍तु आगे उसका अभाव है ऐसा समझना चाहिए। यह कथन प्रायिक व अपवाद रूप है। इस सम्‍बंध में हमारा कोई आग्रह नहीं है।

जै.सा./१/१०८,१०९ (पं.कैलाश चन्‍द)− शिलालेखों में ऋद्धिप्राप्ति की चर्चा अवश्‍य है। परन्‍तु किसी में भी उनके विदेहगमन का उल्‍लेख नहीं है, जबकि एक शिला में ‘पूज्‍यपाद के लिये ऐसा लेख पाया जाता है। स्‍वयं कुन्‍दकुन्‍द ने भी इस विषय में कोई चर्चा नहीं की है

पहले इन सब पर विचार करें, फिर आगे कुछ।

प्रस्तावित उत्तर -

  1. आचार्यदेव विदेह गए ही नहीं
  2. विदेहस्थ मित्र/देव के साथ औदारिक शरीर के साथ गए
  3. चारण-ऋद्धि से गए
  4. आहारक शरीर से गए
  5. तैजस शरीर से गए

Now, dig-in.

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My personal experience after interaction with many intelligent Digambar Muni Maharaaj Ji is that -

  1. The story seems to be a little far-fetched and concocted in order to increase faith & devotion in Jainism. Some details can be said to be true but many other details are written after Acharya KundaKunda maharaj’s Samadhi.
  2. The only doubt that pertains is the extent and vastness of the knowledge that he wrote down for people like us. This creates the doubt that someone who was obviously in connection with other realms might have helped him in some way or the other.

But alas! we’ll never obtain confirmation about the true events of his life.

There are only a handful of Acharyas who wrote about themselves which is not even 5% of the lot. So, only references would do.

If we look at the other references as plainly far-streched we are questioning not our intellect but their authenticity.

I’d be glad if we really try to come to some concrete dialectical and see where it goes.

Are we sure of this?

We are agreeing on this and questioning Kund-kund himself. How?

I know that people most of the times stretch a hypothesis but don’t reject them because some one whom we disbelief or dislike, believes in them. It’s like spanking a kid for having an opinion.

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आदरणीय दादा , डॉ हुकमचंद जी भारिल्ल , ने बिखरे मोती नामक अपने लेख संग्रह में प्रथम लेख में ही इस प्रश्न की चर्चा की है ।-


@Sayyam जी कृपया मार्गदर्शन करें ।

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औदारिक शरीर धारियों को दोष आएगा। (यहाँ दोष दिन-रात का ही तो होगा?)
लेकिन चारण ऋद्धि धारियों के लिए असंयम का दोष क्यों आएगा?, तथा आचार्य कुन्दकुन्द ने वहां आहार ग्रहण ही नही किया, सात दिन उपवास किया था, तो क्या उनके सम्बन्ध में ये बात करना उचित है?
@jinesh ji @Sulabh ji @rishabh_jain ji
Pls answer.

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इस विषय में मुझे विशेष ज्ञात नहीं है, अन्य विशेषज्ञों से पूछना चाहिए।

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क्या पूज्य पाद स्वामी जी भी विदेह छेत्र गए थे


निस्संदेह।:point_up_2:

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यहां पर ऋद्धि धारी मुनिराज का अतिशय ही यह है कि वे जल में,कीचड़ में,अग्नि में,मेघो पर से गमन करते है, तो भी उनके निमित्त से एक भी जीव की हिंसा नही होती, और चारण ऋद्धि में तो स्पष्ट लिखा है कि वे मानुषोत्तर पर्वत तक कहीं भी जा सकते है,उनको असंयम का दोष नही लगेगा।

धवला पुस्तक संख्या ९/४,१,१९/८४/५ आगासे जहिच्छाए गच्छंता इच्छिदपदेसं माणुसुत्तरं पव्वयावरुद्धं आगासगामिणो त्ति घेतव्वो। देवविज्जाहरणं णग्गहणं जिणसद्दणुउत्तीदो।

= आकाशमें इच्छानुसार मानुषोत्तर पर्वतसे घिरे हुए इच्छित प्रदेशोंमें गमन करनेवाले आकाशगामी हैं, ऐसा ग्रहण करना चाहिए।

रही बात आहारक शरीर की उनका काल अन्तर्मुरत है तो यह सभव नही

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जै.सा./१/१०८,१०९ (पं.कैलाश चन्‍द)− शिलालेखों में ऋद्धिप्राप्ति की चर्चा अवश्‍य है। परन्‍तु किसी में भी उनके विदेहगमन का उल्‍लेख नहीं है, जबकि एक शिला में ‘पूज्‍यपाद के लिये ऐसा लेख पाया जाता है। स्‍वयं कुन्‍दकुन्‍द ने भी इस विषय में कोई चर्चा नहीं की हैvidmate app instasave.onl

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जी, अच्छी जानकारी है, लेकिन क्या इसके ऊपर हम :point_up_2:आचार्यों के कथनों को नकार सकतें हैं?