मितवा रे सुमिरण अवसर आयो

मितवा रे सुमिरण अवसर आयो…

मितवा रे सुमिरण अवसर आयो… २,
म्हारा जीवड़ारो…म्हरो ज्ञानारो
म्हारा चेतन को चमको तारो म्हारा वीर प्रभुजी।।टेक।।

साधर्मी सब मिल जिनमंदिर में चालों…२
मैं सचमुच…मैं सबकुछ…मैं निज वैभव को पाया…।।१।।
मितवा रे मंगल उत्सव आयो…२

देव-देवी ने…इन्द्राणी… नर-नारी ने प्रवचनसार भायो।।२।।

साधर्मी सम्मेदशिखर को चाल्यो…२
म्हारा कुन्दकुन्द, म्हारा कहान गुरु, म्हारा चेतन को।
चमको तारो…महावीर प्रभुजी।।३।।

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