विचार और विकल्प में क्या अंतर है ?
निर्विचार अवस्था और निर्विकल्प अवस्था मे क्या अंतर है?
शास्त्र के आधार के माध्यम से स्पष्ट करें।
Both the terms are pretty much used to denote the same thing. Here’s a reference from Rahasya Purn Chithhi:
but sometimes there may be difference which totally depends on the context it has been used for.
Totally agree but…
करणानुयोग का कथन।
आपके द्वारा दिए गए reference में बाहरवें गुणस्थान पर्यन्त विचार का सर्वथा सद्भाव बताया - यहाँ ज्ञान पर्याय को विचार तथा राग द्वेष को विकल्प बताया गया हैं
द्रव्यानुयोग का कथन।
तथा पूर्व में “सविकल्प से निर्विकल्प दशा प्राप्ति” के प्रकरण में विचार छूट जाना चतुर्थ गुणस्थान से अनुभव काल में बताया => “…तत्पश्चात ऐसा विचार तो छूट जाय…नय-प्रमाणादिक का भी विचार विलय हो जाता हैं।”
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सामान्य रूप से विचार को ज्ञान की पर्याय तथा विकल्प को राग-द्वेष की पर्याय कहा जा सकता हैं। प्रकरणानुसार शब्द के अनेक वाच्य हो सकते हैं - स्याद्वाद तथा तर्क-वितर्क द्वारा जैसे राग-द्वेष में कमी हो वैसे अर्थ ग्रहण करना।
मैंने फेसबुक पर हसमुख दोषी जी की पोस्ट में पढ़ा था जिसमे उन्होंने सायद विचार को उबलते हुए पानी में ऊपर की ओर उठते हुए बड़े बुलबुले और विकल्प को पानी में निचे बने हुए छोटे बुलबुलो की तरह बताया था, प्रसंग यह था की दो इन्द्रिय तीन इन्द्रिय आदि जीवो को विकल्प कैसे होते होंगे
निर्विचार और निर्विकल्प की स्पष्टता रत्नकरण्ड श्रावकाचार के page - 423
शुक्लध्यान वाले प्रकरण में विस्तार से स्पष्ट तरीके से समजाया है।
यहाँ दो प्रश्न और है ?
ऊपर की चर्चा से ये तो समझ आ गया की -
विचार = सहज ही उपयोग का पलटना (अर्थ, व्यंजन या योग से)
विकल्प = राग द्वेष पूर्वक उपयोग को कही ले जाना या जाने से रोकना
अविचार = उपयोग का एक ही (अर्थ व्यंजन या योग पर) स्थिर हो जाना, पलटना रुक जाना
निर्विकल्प = राग द्वेष पूर्वक उपयोग को नहीं बदलना, जो कुछ भी सहज ज्ञान में आता है (स्व या पर) उसे वीतराग भाव से जानना
Q1) पर अब बुद्धि पूर्वक और अबुद्धि पूर्वक विकल्प की भी बात आती है, तो यदि स्वयं राग-द्वेष पूर्वक उपयोग को भ्रमाने का नाम विकल्प है तो अबुद्धि पूर्वक विकल्प किसे कहेंगे ?
Q2) एक research में भी बताया था की एक दिन में हमारे अंदर लगभग 60,000 thoughts आते है जिनमे से हमे 96% thoughts अपने आप ही आ जाते है, through subconscious mind | अब यदि ये 96% thoughts अशुभ भाव होते है तो इसमें हमारी क्या गलती ?
@Sanyam_Shastri - could you clarify this
जय जिनेन्द्र ।
विकल्प के ही दो भेद हैं /-
- बुद्धिपूर्वक
- अबुद्धिपूर्वक
देखिए , अबुद्धिपूर्वक विकल्प वे हैं , जो पूर्व की कषाय के संस्कारवश चल रहे हैं । कषाय के कारण ये विकल्प हैं ।
- कई बार ऐसा होता है कि हमारे मन मे कुछ गलत भाव चल रहे होतें हैं, और हमारा मन ही हमसे कहता है कि , नही…! मुझे यह नही जानना ! , तो अबुद्धिपूर्वक विकल्प वह चीज है ।
- मनः पर्यय ज्ञान की जब बात आती है तो वहाँ विपुल मति ज्ञान में इन्ही को जानने की बात है , कि जो मन के भी मन में चल रहे हैं ।
जी हां , हमारी इसमे कोई गलती नही है ।
जैसे आपने सुना होगा कि मुनिराज तो निःकषायी हैं , बात ठीक है , यहां निःकषायी कहने का तात्पर्य है कि यहाँ अबुद्धिपूर्वक विकल्पों को गौण कर दिया है , क्योंकि उनका होना - ना होना एक समान है । उनका मोक्षमार्ग में कोई स्थान नही है ।
पण्डित टोडरमलजी के प्रकरण से थोड़ा बाहर जाकर लिख रहा हूँ-
ज्ञान सविकल्पक होता है स्वभाव से।
यहाँ विकल्प का अर्थ बुद्धि पूर्वक और अबुद्धिपूर्वक वाले विकल्प से नहीं है।
शंका - क्या विचार भी विकल्प (मन वाले) के समान रूपी होते हैं?
विचार = ज्ञान गुण
विकल्प = ज्ञान गुण की पर्याय
इतना फर्क दोनों में हो सकता है।
भाई,
विचार और विकल्प दोनों रूपी नहीं, उनका ज्ञेय हो सकता है।
ज्ञान सविकल्प होता है का आशय है कि उसमें ज्ञेय स्पष्ट रूप से जानने में आते हैं, भले ही अवग्रह रूप में क्यों न हों। साथ ही यदि वह ज्ञान मतिश्रुत हो तो स्पष्ट होने पर भी अविशद होता है क्योंकि challengeable है।
सम्पूर्ण विषय का उपसंहार -
विकल्प - कल्पित होने से राग द्वेष रूप है।
विचार - चरण करने अर्थात् गमन करने अर्थात् जानने रूप है।
आत्मानुभूति में दोनों अवस्थाएं हैं। निर्विचारदशा मन-आधारित होने से परोक्ष है, निर्विकल्पदशा रागद्वेष रूप न होने से सुख/अनुभव प्रत्यक्ष है।
निर्विचार - ज्ञान पर्याय, निर्विकल्प - चारित्र पर्याय और इसमें शुद्धात्म प्रतीत - श्रद्धा पर्याय। Hence, अनुभूति किसी गुण की नहीं गुणाभेद रूप आत्मद्रव्य पर्याय है।
पर्याय है पर उसकी आय द्रव्य है।
Thanks for writing this. Never thought of these words this way.
Have a query-
What is निर्विचारदशा in आत्मानुभूति? As विचारmeans जानने रूप than निर्विचार means नहीं जानने रूप।
And you have also stated
What does that mean?
विशेष जानने के अभाव रूप (समयसार, 15)
आत्मानुभूति के काल में ज्ञान भी मतिश्रुत रूप होने से ऐसा कहा। (रहस्यपूर्ण चिट्ठी)