जिनालय में दर्शन करने की सम्पूर्ण विधि क्या है? जिनालय में प्रवेश पूर्व, दर्शन करते समय, दर्शन करकेने के पश्चात क्या बोलना/ भाव भाने चाहिए ? जिनालय में शुद्धताके सम्बन्ध में क्या ध्यानमें रखने योग्य है। इसके अतिरिक्त क्या करने / नहीं करने योग्य है ?
सम्पूर्ण विधि बताए।
अर्घ चढ़ाने का क्रम क्या है ?
देवदर्शन क्यों और कैसे
देवदर्शन किसे कहते हैं
जिनेन्द्र देव को मानने के कारण हम जैन कहलाते हैं। उन जिनेन्द्र देव के भक्ति भाव और पूरी श्रद्धा से मन-वचन-काय से उनको देखने को देवदर्शन कहते हैं।
हमें मंदिर जाकर दर्शन क्यों करना चाहिये
हम सुखी होना चाहते हैं जिसका उपाय वीतरागी जिनेन्द्र देव ने ही बताया है। अतः मंदिर हम इसलिये जाते हैं,ताकि हम
- उनके जैसा बन सकें
- उनके बताये रास्ते पर चल सकें
- उनके प्रति कृतज्ञता प्रदर्शित कर सकें
- उनका स्मरण कर सकें
- उनके जैसे निर्मल परिणाम हो सकें
- आत्मिक शांति मिल सकें
क्या सिर्फ मंदिर जाकर हम पूर्ण सुखी और भगवान बन सकते हैं
नहीं, पूर्ण सुखी होने और भगवान बनने के लिये सिर्फ मंदिर जाना काफी नहीं है
देव-दर्शन मोक्षमार्ग की ओर जाने के लिये एक कदम है, परंतु देवदर्शन और जिनेन्द्र भगवान के प्रति पूर्ण श्रद्धा निश्चित रूप से एक दिन हमें पूर्ण सुखी कर सकती है।
भगवान का स्मरण करने के लिये क्या मंदिर जाना ही आवश्यक है
- भगवान का स्मरण किसी भी समय और किसी भी स्थान से किया जा सकता है।
- परंतु हर कार्य के लिये विशेष स्थान होता है, जैसे- पढ़ने के लिये स्कूल, इलाजा कराने के लिये अस्पताल, वैसे ही भगवान के स्मरण के लिये उपयुक्त स्थान मंदिर है।
- देवदर्शन के लिये शांत वातावरण और शांत मन की आवश्यकता जो मंदिर में ही संभव हो पाती है।
दर्शन करने के लिये जिनमंदिर ही क्यों जाये
- जिनमंदिर में ही सच्चे देव होते है, जो वीतरागी-सर्वज्ञ-हितोपदेशी हैं
- वे मोह,राग,द्वेष,जन्म,मरण,रोग,बुढ़ापा आदि सभी दोषों से रहित हैं
- वे साज-श्रंगार, स्त्री, वस्त्राभूषण, अस्त्र-शास्त्र आदि सभी परिग्रहों से रहित हैं
- वे ही हमारे आदर्श हैं
- हमें उनके जैसा ही बनना है
हमने इतने पाप किये हैं, इतने पापी होते हुये भी क्या हमें मंदिर में प्रवेश करना चाहिये
जो रोगी होता है वही तो डॉक्टर के पास जाता है
हमें भी मिथ्यात्व का रोग है जिसका उपाय जिनेन्द्र देव के पास ही है
पाप करने के बाद भी हमें मंदिर जाना चाहिये ताकि पहले किये गये पापों का हम प्रायश्चित् कर सकें तथा आगे होने वालें पापों से बच सकें।
हमें जिनमंदिर में क्या-क्या नहीं करना चाहिय
हमें मंदिर में क्या-क्या नहीं ले जाना चाहिये
- अशुद्ध वस्तुयें ( जैसे- जूते-चप्पल,मोजे,आदि)
- हिंसक वस्तुये ( जैसे- चमड़े के बने पर्स,बैल्ट, सिल्क के कपड़े, आदि)
- खाने-पीने की वस्तुयें ( जैसे- रोटी-सब्जी, आदि)
जिनमंदिर कैसे जाना चाहिये
- नहा-धोकर
- स्वच्छ कपड़े पहिनकर
- शुद्धता का ध्यान रख कर
जिनमंदिर में प्रवेश करने से पहले क्या करना चाहिये
-जूते-चप्पल उतार लेने चाहिये।
-शुद्ध जल से हाथ पैर धोने चाहिये
-तीन बार निःसहि शब्द बोलते हुये प्रवेश करना चाहिये
निःसहि शब्द का क्या अर्थ है
सर्व सांसारिक कार्यों का निषेध
निःसहि शब्द क्यों बोला जाता है
- यह संकल्प करने के लिये का मंदिर में हम किसी भी सांसारिक कार्यों की चिंता या चर्चा वार्ता नहीं करेंगे
- किसी भी प्रकार की विषय-कषाय संबंधी क्रियायें नहीं करेंगे
- जिनमंदिर मे पहले से विद्यमान किसी व्यक्ति को अपने आने की सूचना देने के लिये भी।
देवदर्शन कैसे करना चाहिये
- भगवान की वेदी के सामने खड़े होकर तीन बार ऊँ जय-जय-जय नमोस्तु-नमोस्तु-नमोस्तु कहना चाहिये
- णमोकार मंत्र , चत्तारि मंगल का पाठ करना चाहिये
- जिनेन्द्र भगवान को साष्टांग नमस्कार करना चाहिये
- मन को एकाग्रकर भगवान की स्तुति बोलना चाहिये
- स्तुति बोलते हुये तीन प्रदक्षिणा देनी चाहिये
- पुनः भगवान को नमस्कार करना चाहिये
- नौ बार णमोकार मंत्र का जाप कर कायोत्सर्ग करना चाहिये
साष्टांग नमस्कार क्या है
स+अष्ट+अंग = साष्टांग
आठों अंगों सहित नमस्कार साष्टांग नमस्कार है।
शरीर के वे आठ अंग हैं- दो पैर, दो हाथ, ह्रदय, सिर, पीठ , नितम्ब (पीछे का भाग)
प्रदक्षिणा किसे कहते हैं
भगवान का सर्वांगीण वीतरागता देखने के लिये भगवान के चारों और जो चक्कर लगाये जाते हैं।
इसे परिक्रमा भी कहते हैं.
प्रदक्षिणा तीन ही क्यों की जाती है
1.तीन संख्या बहुवचन की सूचक है, अतः तीन बार लगाने का अर्थ अनेक बार लगाना होता है
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मन-वचन-काय की एकाग्रता पूर्वक प्रदक्षिणा की सूचक तीन संख्या है
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कृत-कारित-अनुमोदना की सूचक यह तीन संख्या है
4.सम्यग्दर्शन-सम्यग्ज्ञान-सम्यक्चारित्र को प्रगट करने की भावना रूप यह तीन संख्या है
क्या मंदिर में जाकर हमें धनादि या अपनी समस्याओं के समाधान माँगना चाहिये
-जब कोई राजा अपना पूरा राज्य देने को तैयार हो उससे कोड़ियाँ माँगना जैसे मूर्खता है उसीप्रकार त्रिलोक पूज्य देवाधिदेव भगवान जो हमें स्वयं के जैसे पूर्ण सुखी होने का उपाय बता रहे हैं उनसे संसार की तुच्छ वस्तुओं की कामना करना मूर्खता होगी
- वास्तव में जिनेन्द्र देव किसी भी जीव का कुछ नहीं कर सकते, ना किसी को कुछ दे सकते हैं और ना ही किसी से कुछ ले सकते हैं, वे तो मात्र जानते-देखते हैं।
हमें जिनमंदिर में क्या-क्या नहीं करना चाहिये
-हिंसामय कार्य
-राग-द्वेष परक कार्य व बातचीत
-अज्ञानपरक कार्य
-संसारिक बातों का विचार व चिंतन