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प्रयोजन और सिद्धान्तों का क्षेत्र अलग है । माँ दूध में पानी मिलाएं तो समझदारी और दूध बेचनेवाला यदि करे तो चोरी । अब यहाँ कैसे कहे कि प्रयोजन ने सिद्धान्त ही बदल दिया?
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पोषण और कथन में अंतर है । For more on this, pl go through this thread.
It is difficult to comment on either of the three cases. All the stories carry a particular message and were written, more or less, for that particular purpose. Mere narration of how the events took place could be a secondary thing but not a priority.
क्या इसका अर्थ यह हुआ कि किसी भी बात को, प्रयोजन का बहाना बनाकर, उलट पलट किया जा सकता है ?
→ यदि प्रयोजन सच्चा है तो सिद्धांतों पर कोई आँच नहीं आती ।
तुम कहो सो सही, हम कहें वो गलत -
Can’t put it better than what is already said by पण्डित टोडरमल जी -
यहाँ कोई तर्क करे कि जैसे नानाप्रकारके कथन जिनमतमें कहे हैं वैसे अन्यमतमें भी कथन पाये जाते हैं। सो अपने मतके कथनका तो तुमने जिस-तिसप्रकार स्थापन किया और अन्यमतमें ऐसे कथनको तुम दोष लगाते हो? यह तो तुम्हें राग-द्वेष है?
समाधानः – कथन तो नानाप्रकारके हों और एक ही प्रयोजनका पोषण करें तो कोई दोष नहीं, परन्तु कहीं किसी प्रयोजनका और कहीं किसी प्रयोजनका पोषण करें तो दोष ही है। अब, जिनमतमें तो एक रागादि मिटानेका प्रयोजन है; इसलिये कहीं बहुत रागादि छुड़ाकर थोड़े रागादि करानेके प्रयोजनका पोषण किया है, कहीं सर्व रागादि मिटानेके प्रयोजनका पोषण किया है; परन्तु रागादि बढ़ानेका प्रयोजन कहीं नहीं है, इसलिये जिनमतका सर्व कथन निर्दोष है। और अन्यमतमें कहीं रागादि मिटानेके प्रयोजन सहित कथन करते हैं, कहीं रागादि बढ़ानेके प्रयोजन सहित कथन करते हैं; इसीप्रकार अन्य भी प्रयोजनकी विरुद्धता सहित कथन करते हैं, इसलिये अन्यमतका कथन सदोष है। लोकमें भी एक प्रयोजनका पोषण करनेवाले नाना कथन कहे उसे प्रामाणिक कहा जाता है और अन्य-अन्य प्रयोजनका पोषण करनेवाली बात करे उसे बावला कहते हैं।
- मोक्षमार्ग प्रकाशक, आठवाँ अधिकार, pp. 302-03
The answer to this question can be derived from the lines underlined in the above quote.