शंका - इस प्रकार तो असंयत सम्यग्दृष्टि को भी संयतपने का प्रसंग आता है, क्योंकि मन के समत्व को ही संयम का स्वरूप माना गया है?
समाधान - तो ऐसा कौन कहता है कि अविरत सम्यग्दृष्टि को सर्वथा संयम का अभाव होता है? उसको भी अनन्तानुबन्धी कषायात्मक असंयम का अभाव होने से संयतपने की सिद्धि होती है।
शंका - फिर उसको असंयतत्व कैसे माना गया है?
समाधान - उसको (चतुर्थ गुणस्थान में) बारह प्रकार का मोह विद्यमान होने से असंयम का सद्भाव होता है।
-आचार्य विद्यानन्द, युक्त्यानुशासनालंकार (Sanskrit), छन्द 52 की टीका, pp. 133-134.