जीवों की कमी नहीं होने का कारण।

क्योंकि अनंत के भी अनंत प्रकार होते हैं। मोक्ष जाने वाले जीव तथा total numbers of जीव में बहुत बड़ा अंतर है। Even a tiny piece of potato have infinite times जीव than total सिद्ध।

अनंत का भी अंत होता है। जैसे जीवों की संख्या fix होने से उनकी गिनती का अंत तो है ही परन्तु वह अपने ज्ञान का विषय ना होने से अनंत की श्रेणी (category) में आता है।

Actually, the categorization of countings in Jainism is as per ज्ञान:

संख्यात - जो मति/श्रुत ज्ञान का विषय बने। (बोरी में रखे चावल)
असंख्यात - जो अवधि/मनःपर्यय ज्ञान का विषय बने। (असंख्यात द्वीप समुद्र)
अनंत - जो केवल ज्ञान का विषय बने। (अलोकाकाश का परिमाण, ज्ञानादि अनंत गुण)

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