अष्ट द्रव्य और गंधोदक

जब जल प्रभु चरणों के स्पर्श से गंधोदक बन जाता है तो अष्ट द्रव्य आदि सामग्री अर्पण के बाद निर्माल्य / अनुपयोगी / अस्पर्शी क्यों बन जाता है?

अष्टद्रव्य आदि के अर्पण में त्याग का भाव होता है और त्यागी हुई वस्तु अनुपयोगी होती है

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कृपया इस सम्बंध में विशेष बताएं।

हम भगवान को जो दव्य चढ़ाते है ,उसका तात्पर्य यह है कि हम उत्कृष्ट पुरुष के समक्ष जलादि बहुमूल्य वस्तु (पदार्थ)का त्याग करते है ,और वो देव द्रव्य कहलाता है उसे निर्माल्य कहा जाता है इसी लिए वो अस्पर्शी है ,
सेव्य नहीं है।
*जिस जल से हमने भगवान का अभिषेक किया है ,उसमें अर्पण का अभाव नहीं है ,वो तो केवल अशुद्धता दूर करने के लिए प्रयोग किया जाता है , अतःवह शुध्द होने से ग्राह्य है

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अस्पर्शी से आपका क्या मतलब है? क्या हमें उस द्रव्य को छूना नहीं चाहिए ?
लेकिन मै तो विसर्जन के बाद उसे थाली से टेबल पर रख देता हूँ. और जो थाली में स्वस्तिक, २४, २, ३, ५, तीन बिंदु (रत्नत्रय के प्रतिक) और सिद्ध शिला बनाई होती है, उसे साफ़ करता हूँ, जिससे उसकी अवहेलना नही हो, तो क्या वो गलत है?

या ऐसा है की हमे उसे सिर्फ पूजा के वक़्त नहीं छूना चाहिए , क्युकी अभी सिर्फ स्थापना हुई है, विसर्जन नहीं हुआ?

अस्पर्शी से तात्पर्य छुने से न लेकर ,उसका प्रयोग नहीं करने से है ।

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