स्वयमेव इस जगत का सब काम हो रहा है | Swaymev is jagat ka sab kaam ho rha hai

स्वयमेव इस जगत का सब काम हो रहा है।
हमको भी धीरे धीरे श्रद्धान हो रहा है ।।टेक।।

करने को जड का कार्य, तुझे जड ही होना होगा,
अज्ञान मे ही अब तक, अज्ञान को ही भोगा ।
जो होने योग्य होता, बस वो ही हो रहा है ।।1।।

ज्यो स्वर्ण भाव मे से, नही लोह भाव हुवे,
त्यो ज्ञान भाव मे से, बस ज्ञान भाव हुवे ।
कर्तत्व का ये बोझा, अब तो उतर रहा है ।।2।।

केवली स्वयं भी अपनी, पर्यायो के है कर्ता,
पर फेरफार उनके, करने में है अकर्ता ।
ज्ञातृत्व भाव मे ही, आनंद हो रहा है ।।3।।

हे सिद्धराज तुमने, पाई दशा है जैसी,
संकल्प है ये मेरा, मैं भी धरूंगा वैसी ।
अब स्वयं का स्वयं मे विश्राम हो रहा है ।।4।।

रागी ने वीतरागी, को राग से ही जाना,
ज्ञाता स्वरूप उनका, नाही कभी पिछाना ।
कण कण स्वतंत्र अपनी, सत्ता में सो रहा है ।।5।।

Artist - पं. संजीव जैन

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