स्वरूप सब जीवन को | swarup sab jeevan ko

(तर्ज : परिणति सब जीवन की… )

स्वरूप सब जीवन को एक रूप वरनो।
स्वाँग सर्व न्यारे रहें, सहज रूप धरनो।। टेक।।

नित्य मुक्त शुद्धात्म, निर्विकार चित्स्वरूप।
अन्तर्मुख ज्ञान माँहि, प्रत्यक्ष अनुभवनो।।1।।

शान्तरूप तृप्त रूप, पूर्ण आनन्द सो।
ध्येय रूप- ज्ञेय रूप, ज्ञानरूप धरनों।।2।।

अव्यक्त नित्य व्यक्त, नित्य उद्योत रूप।
स्वयं सिद्ध कृतकृत्य, नाहिं कछु करनो।।3।

निष्कषाय निष्कलंक, निर्बन्ध निर्लेप।
वचनातीत अचिन्त्य शक्तिमान चित्त धरनो।।4।।

निरपेक्ष निद्ठन्द्र, सहज निर्ग्न्थ रूप।
नाहिं रोग शोक भय, नाहिं जन्म-मरनो।।5।।

Artist: ब्र. श्री रवीन्द्र जी ‘आत्मन्’
Source: स्वरूप-स्मरण

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