१७. स्वाध्याय सप्तपदी
स्वाध्याय नित करना,
नित्य नियम से करना ।
विनय भक्ति से करना,
हित दृष्टि से करना ॥१॥
तत्व जिज्ञासु होकर,
शास्त्र वांचना भाई ।
नहीं समझ में आवे,
प्रश्न करो सुखदाई ॥२॥
गुरुजन उत्तर देवें,
चिंतन कर सुखकारी ।
करना ऊहापोह फिर,
हो निर्णय अविकारी ।।३।।
नाहीं शब्द पकड़कर,
पक्ष का पोषण करना ।
शास्त्रों का अभिप्राय तुम,
सहज हृदय में धरना ॥४॥
नहीं भूलना भाई,
आम्नाय सुखकारी ।
सम्यक ज्ञान ही जग में,
सत्य-चरण हितकारी ।।५।।
श्रद्धावान सु होकर,
स्व-पर विवेक जगाना ।
जिज्ञासु जो होवें,
धर्मोपदेश सुनाना ॥६॥
सहज भाव ही रखना,
निज वैराग्य बढ़ाना ।
बोधि समाधि पाकर,
नरदेह सफल बनाना ।।७।।
रचयिता-: बा.ब्र. श्री रवींद्र जी 'आत्मन्